Book Title: Jain_Satyaprakash 1937 08 SrNo 25
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १] માંડવગઢ કે તારાપુર મંદિર કા શિલાલેખ अलंकृत ऐसे श्री सुपार्श्व प्रभु-संवत् १५५१ वर्षे शके १४१६ वैसाख शुदी ६ तिथी शुक्रवार पुनर्वसु नक्षत्र को खिलजी वंशे सुरताण ग्यासदीन के राज्य अमल में उसका पुत्र सुरताण नासिरसाहि युवराज जिनका मंत्री माफरल मलिक पुंजराज और बन्धु मुंजराज के साथ में श्रीमाल ज्ञाति बोहरा गोत्रवाला रणमल्ल पत्नी रयणादे । रणमल्ल का पुत्र “पारस" पत्नी जो दोनों कुल को आनन्द देनेवाली और सत्पुत्र के रन समान "मटकू' । पारस का सुपुत्र बोहरा " गोपाल" और दोनों कुल को शोभानेवाली सुशीला पत्नी “ पुनी" । गोपाल के दो पुत्र संग्राम, जीझा । संग्राम की पत्नी करमाई और जीझा की पत्नी जीवादे-आदि कुटुम्ब सहित । श्री भिन्नमाल वडगच्छे श्री वादी देवसूरि जिन्हों के शिष्य श्री वीरदेवमूरि के पाटे अमरप्रभसूरि तिनके पाटे विजयवान गच्छनायक पूज्य श्री कनकप्रभसूरि के उपदेश से प्रगट, प्रताप, बल है जिसका, परोपकार करने में चतुर अपने स्व भुजा से उपार्जित धन के व्यय करने से पुण्य कार्य का अच्छा जन्म सफल किया है जिसने और राजा इन्द्र की सभा जिसने शोभाई हुई है व सजन मनुष्यों के मनरूपी सरोवर में राजहंस के समान, श्री शत्रुजय आदि चार तीर्थों के पट्ट के निर्माण करनेवाले, श्री देवगुरु की आज्ञा पालन में तत्पर, सर्व कार्यों में निपुण ऐसा श्रीमाल ज्ञाति बोहरा गोत्र के आभूषणरूप हमेशा जैनधर्म की क्रिया कांड दोष रहित से करनेवाले श्रीमन् मंडपाचल निवासी विजयवन् बोहरा श्री गोपालने मांडवगढ के दक्षिण दिशा को तलहटी में तारापुर नगर में पुन्य के लिए और मन इच्छित वस्तु को देनेवाले ऐसे सातवे श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का जो सर्व लोकां को आनन्द उत्पन्न करनेवाले और अत्यन्त प्रीतिवाला मंदिर बताया है ऐसे गोपाल, जिनका शीलरूपी आभूषण और शोभित निर्मल आजीविका जिसकी तथा विनयवान, बुद्धिवान, विविध प्रकार के आरंभ छोडने में निपुण, जिनेश्वर की आज्ञा के आधीन, सरल हृदयवाला, सुगुरु के चरण में तत्पर ऐसे अपनी पत्नी पुनी के साथ में गृहस्थाश्रम के सुख भोग रहे हैं, ज्यादे समय तक आनन्दवर्ता, सर्व शुभ हो, कल्याण हो । लेख का परिचय उक्त शिलालेख मांडवगढ जैन श्वे. मंदिर के दक्षिण दिशा में करीब सात आठ मील की दूरी पर तारापुर गांव के पास जैन मंदिर में सफेद पाषाण के ऊपर लिखा हुवा दीवार में लगा हुवा है । मांडवगढ से रवाना होकर करीब दो मील तक सडक ( रोड ) के रास्ते तारापुर-दरवाजे तक पहुंचने के पश्चात् किले (गढ) की हदबंदी के For Private And Personal Use Only

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