Book Title: Jain_Satyaprakash 1937 08 SrNo 25
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री जैन सत्य प्रश [१३ जैसे परों को इस तारापुर मंदिर की यात्रार्थ आते हेांगे, क्यों कि शिलालेख में शत्रुजयाति तीर्थों के पट्ट निर्माण का स्पष्ट खुलासा है। इसके सिवाय यह भी कारण पैदा हो जाता है कि तारापुर दरवाजे के बाद घाटी उतरते हैं उस वक्त उस दृश्य से यह भाव हो आता है कि श्री शत्रुजय की 'पेटा की' पाग उतर रहे हों और प्रभु की यात्रा को जा रहे है । वहां तारापुर मंदिर के यात्रालु पर्वो के दिन प्रभु महोत्सव की सवारी निकाल कर सूर्यकुंड पर पहुंचते होंगे। यह सूर्यकुंड उस वक्त गांव की आबादी के नजदीक होगा। इस वक्त आबादी घट जाने से कुछ दूर जान पडता है । सिद्धगिरि पर रहा हुवा सूर्यकुंड इस कुंड के नाम से स्पष्ट याद दिवा देता है। वहां कुंड के पास रही हुई वाडी (बगीचा) में स्नात्र पूजा आदि प्रभु भक्ति पूर्ण होने के पश्चात् भाता आदि से संधभक्ति होती होगी और फिर अपने अपने स्थान को चले जाते हेांगे । उस वख्त के आनंद और यात्रा के भाव को देखकर उक्त रखबदासजी ने यह चैत्यवंदन रचा होगा । चैत्यवंदन में शत्रुजय, गिरनार, तारंगा, आबू , अष्टापद, सम्मेत शिखर, तीर्थों को वंदन करके आखरी मांडवगढ मंडन सुपार्श्व प्रभु को वंदन किया है। और शिलालेख में चार पट्ट निर्माण का खुलासा है तो शत्रुजय, गिरनार, अष्टापद, संमेतशिखर, प्रभुविहार व निर्वाण के स्थान होने से इनका पट्ट रूप में निर्माण किया होगा और बाकी पट्ट साधारण रूप से मंडन किये हेांगे। उस वक्त का भाव याद करके यह चैत्यवंदन की रचना की होगी और जब से मांडवगढ, तीर्थ की प्रख्याति में आया हो। इस वक्त मांडवगढ में मंदिर के मूल नायक शांतिनाथ प्रभु थे। सुपाचे प्रभु का बिंब न होने से यात्रालुओं को सहज शंका उत्पन्न हो जाती है, परंतु उक्त लेख देखने से शंका का कारण नहीं रहता है, क्योंकि शिलालेख में सुपार्श्वनाथ प्रभु के मंदिर का खुलासा हो गया है । मुझे तो अब यहां तक विश्वास होता है कि सुपार्श्व आदि प्रभु के बिंब उसी तारापुर के मंदिर के आसपास सुरक्षित दशा में जमीन ( भूगर्भ ) में प्रवेश करा दिये हेांगे, क्योंकि मुगल जमाने में मूर्ति, मंदिर के तोड फोड का काम जोर शोर से चलता था । उससे बचाने के लिये बुद्धि निधान पुरुषों ने यह कार्य अवश्य किया होगा । किस पुण्यात्मा के हाथ से प्रभु दर्शन देंगे यह तो ज्ञानी जाने । श्री संघ व पुण्यात्माओं, लक्ष्मीवंतों से प्रार्थना है कि इस मंदिर को टिका रखना हो तो थोडे खर्च से यह कायम रह सकता है । नहीं तो थोडे दिनों पश्चात् यह भी जमीन में सो जायगा। आशा है शीघ्र ही धर्मवंत इस ओर अपना ध्यान आकर्षित करेंगे । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62