Book Title: Jain_Satyaprakash 1937 08 SrNo 25
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [38] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [43 " कर्मबंध के दो मुख्य कारणों में मोह और योग में से केवल योग रह जाता है। अतः सयोग केवली कहा जाता है । जब जीवन्मुक्त केवली का योग भी नष्ट हो जाता है तब वह अयोग केवली कहलाता है" ___-- (जैनदर्शन, व० ४, अं० ५, पृ० २०२) अर्हन् पद को प्राप्त कर के सर्वज्ञ सर्वदर्शी महान् आत्मा इस पृथ्वीतल पर विहार (शरीर योग क्रिया) करते हैं और स्थान स्थान पर धर्मोपदेश देकर (वाग योग क्रिया से ) जीवों को कल्याण मार्ग में लगाते हैं ।* जब उनकी आयु एक अन्तर्मुहूर्त बाकी रह जाती है तब तीसरे सूक्ष्म क्रिय शुक्ल ध्यान का समय आता है। इस ध्यान में मनोयोग, वचनयोग का निग्रह करके काययोग की क्रिया को अत्यंत सूक्ष्म कर दिया जाता है, इसीसे इसका नाम सूक्ष्म किया है। समुच्छिन्न क्रिय नाग के चौथे शुक्ल ध्यान में श्वास उच्छ्वास आदि कायिक क्रियाएं समुन्छिन्न अर्थात बिल्कुल न हो जाती है। -- (जैनदर्शन, व० ४, अं० ५, पृ० २०१) सारांश ----- तीर्थंकर को तीनों योग हैं, तजन्य प्रवृत्ति है, कर्मबन्ध है, श्यामाधाम वगैरह है। अयोगि केवलीदशा में ही इनका क्रमश: अमाव होता है। स्वेताम्बर मत तो स्पष्ट है कि..--तीर्थकर को तीनां योग हैं, आहार वगैरह सब पर्याप्ति है, औदारिक शरीर है, शरीर की उन के अनुसार वृद्धि होती है, शुभा है, आहार प्रवृत्ति है और वेदनीयादि चार कर्म हैं। या गी गाना अविरुद्ध है कि आहारपानी के स्वीकार से या वस्त्र के धारण करने से ५ जा.न, ३ . ५ चाकिरदायादि कोई आत्मिक गुण दवता नहीं है। * धर्मोपदेश-प्रदान सिद्ध होते ही आहार विधि की भी सिद्धि हो जाती है। अतः कितनेक विद्वान् मानते हैं कि तीर्थंकर भगवान् उपदेश देते नहीं हैं, किन्तु उनके शरीर (या ब्रह्मरंच ) से स्वयं अपोरुषेयसी अव्यक्त निरक्षरी वाणी निकलती है जो अर्ज मागधिक, देवकृत अतिशय द्वारा, समज में आती है (विज्जन बोधक वगैरह )। जव तीर्थकर के धर्मापदेश निधि में ही दोषारोपण माना जाता है तब तीर्थकर से प्रश्नोत्तर होना मानना फिजूल ही है, किन्तु दिगम्बरीय शास्त्रो में स्थान स्थान पर तीर्थकर से प्रश्नोत्तर के उल्लेख मिलने है । तात्पर्य यह ई कि-दिगम्बर विद्वानों ने द्रव्य वचन योग और द्रव्य शरीर याग को उखाने के लिए यह एक नया अडंगा खड़ा कर दिया है। सी ऐसी विचित्र लाना का विशेष परिचय पाउनको गंग पर कराया जायगा । For Private And Personal Use Only

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