Book Title: Jain Satyaprakash 1937 06 SrNo 23
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लुप्तप्रायः जैन ग्रन्थों की सूचि ___ कर्ता-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा, कलकत्ता (गतांक से पूर्ण) वृहटिप्पनिका उल्लिखित अलभ्य ग्रन्थः-१ ग्रन्थनाम कर्ता श्लोकसंख्या जैनग्रन्थावलो पृष्ठ संख्या पंचकल्प ११३३ (बृहत् टिप्पनिका) *पंचकल्पनियुक्ति (,) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ति मलयगिरि ९५०० (,) निशीथचूर्णि-विंशोद्देशव्याख्या पार्श्वदेव ११०० (सं.११७३) पृ० १२ महानिशीथ लघु-मध्यम-वाचना ३५००-४२०० आवश्यक चूर्णि १८४७४ *विशेषावश्यकवृत्ति मलयगिरि ९००० चैत्यवंदनभाष्य वृत्ति चैत्यवंदन विचारगाथाबद्धसूत्रव्याख्यारूप , २४ पंचपरमेष्ठिविवरण (प्राकृत गाथामय) मतिसागर २५० (सं.११६८) ,, ३४ *ओधनियुक्तिचूर्णि जीतकल्प वृत्ति विवरण ५४३ *निरयविभक्ति (बृहत् टिप्पनिका) न्यायप्रवेश टिप्पन श्रीचंद्र (सं. ११६८) सम्मतितर्कवृत्ति मल्लवादी ७०० , १६ ,, १८ ० ,, २४ ० ० ० ,, ५४ ० २०० श्वेतांबर दर्शनसिद्धि षड्दर्शनदिङ्मात्रा विचार अनेकान्तव्यवस्थापन अपशब्द निराकरण २१५ अपौरुषेय वेदनिराकरण यशोदेव ५११ स्याद्वादरत्नाकर टिप्पन (बृहत् टिप्पणिका) १ बहटिप्पनिका के आधार से जैनप्रन्थावली में नोंधे गये हैं। * इस चिह्न के ग्रन्थ बुहटिप्पनिकाकार को भी अलभ्य थे । २ मूल मन्थ ८४००० श्लोक प्रमाण कहा जाता है । बृहत् टिप्पनिका में प्रथम खंड विना ३६००० प्रमाण नोंधित हैं, पर वर्तमान में मात्र १३००० श्लोक प्रमाण ही उपलब्ध है । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44