Book Title: Jain Satyaprakash 1937 06 SrNo 23
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૫૭૪ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ २४ सिद्धांत सार (तर्कग्रंथ) सं. जयशेखरमूरिकृत षट्दर्शन समुच्चय २५ वागर्थ संग्रह पुराण कवि परमेष्ठी जिनसेनकृत आदिपुराण २६ प्रमाण संग्रह स्वोपज्ञ भाष्य' अकलंक सिद्धिविनिश्चय अनंतवीर्य के भाष्य में २७ सिद्धिविनिश्चय स्वोपज्ञ भाष्य , २८ न्याय चूलिका ,, जैन सिद्धांत भास्कर भा.३, किरण ४, पृ. १६० जैन साहित्य का पार पाना समुद्र के समान दुष्कर है । इस समाज का साहित्य इतना विशाल है कि उसके नाम मात्र की सूचि के तैयार करने में वर्षों की आवश्यकता है, और फिर भी पूर्ण होना तो असम्भव ही है । अतः इस सूचि के अतिरिक्त और भी सैकड़ों ग्रन्थ ऐसे हेांगे जिनके अस्तित्व का पता अन्य ग्रन्थों से मिलता है पर अद्याविधि वे हमें उपलब्ध नहीं हुए हैं। उन सब ग्रन्थों की एक विस्तृत सूचि प्रकाशित होना नितान्त आवश्यक है, जिससे खोज शोध करनेवाले को अलावा ग्रन्थों का पता लगाने और जनता के सामने प्रकाशित करने में मुभीता हो जाय । ___ग्रन्थों के लुप्त हो जाने में हमारी अकर्मण्यता, उपेक्षा और खोज, शोध व साहित्य प्रेम का अभाव ही मुख्य कारण है। न तो मेरा प्राचीन जैन साहित्य का अध्ययन ही विशाल है और न मैं विद्वान् ही हूं और यह कार्य विशाल अध्ययनवाले का है, पर अपनी उत्कृष्ट साहित्य-रुचि के आधीन होकर मैंने यथासाध्य खोज कर यह सूचि निर्माण की है । आशा है साहित्यसेवी विद्वानों का इस ओर ध्यान आकृष्ट होगा और वे अपने अपने अनुभव को लेखरूप में जनताके समक्ष प्रकाशित करेंगे। जिससे इस परमावश्यक कार्य का सुसम्पादन हो सकेगा। - जैन साहित्य के गहन अभ्यासी विद्वानों को विज्ञप्ति करता हूं कि वे शीघ्र ही अपने अपने अध्ययन में जैन साहित्य के लुप्तप्रायः जैन ग्रन्थों के नामादि देखे उनको पत्रों में सप्रमाण प्रकाशित करने की कृपा करें। खोज शोध प्रेमी सज्जनों से निवेदन है कि इस सूचि में उल्लखित ग्रन्थों में से कोई ग्रंथ किसे मिले तो मुझे सूचित करने की या इसी पत्र में उसका परिचय प्रकाशित करने की कृपा करें। (समाप्त) १. नं. २६-२७ मूल ग्रन्थ श्वेतांबर भंडारों में से प्राप्त हो चुके हैं। देखें जैनसिद्धान्त भास्कर भाग ३ किरण १ में "भट्टारक अकलंक के और एक अलभ्य ग्रन्थ की प्राप्ति" नामक पं. सुखलालजी का लेख । For Private And Personal Use Only

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