Book Title: Jain Satyaprakash 1937 06 SrNo 23
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir પુરાતન ઇતિહાસ અને સ્થાપત્ય संग्राहक (१) मांडवगढ संबंधी लेख नन्दलालजी लोढा, बदनावर (मालवा) (७) सं० १४८३ वै० श्रु० ५ शुक्रे श्री कोरंट गच्छे ॥ श्री नन्नाचार्यसंताने उपकेशज्ञातौ शा........भा० रूपादे पुत्र सा० हेम भा. भरमी पुत्र साह सांगणेन निज मातृ श्रेयसे श्री संभवनाथ बिबंका........श्री ककसूरिभिः ॥ यह लेख सफेद पाषाण की लंगोटवाली खंडित मूर्ति के पाटली के पीछे है। कमर से नीचे का भाग का हिस्सा होकर उसके भी दो टुकड़े हैं । यह मांडवगढ जैन कारग्वाने के कंपाऊंड में से मिला हुवा उतारा है। (८) संवत १९६४ के वैसाख शुदी १० के रोज धारनरेश श्री उदाजीराव महाराज की राज्यसत्तागत श्री मांडवघ(ग)ढ में तपागच्छालंकार भट्टारक श्री विजयानंदसूरीश्वर उर्फे आत्मारामजी महाराज के शिष्यरत्न पंडितप्रवर श्री लक्ष्मीविजयजी महाराज इनों के शिष्य मुनिराज श्री हंसविजयजी महाराज के सदुपदेशसें खानदेश में आया हुवा श्री आमलनेर वास्तव्य तपागच्छीय श्रावकवर्य शाह रूपचंद मोहनचंद की माताजी श्रीमती चूनाबाई स्वपुत्रवधू रूपाबाई तथा अपनी बहिन सीताबाई सहित ने पाषाणादि मयी दरवाजा युक्त धर्मशाला बनवाई तिसका काम चलता था इतने में धर्मशाला के अंदर की जमीन का समार काम करते करते श्री जिनेश्वर देव की पुरागी ९ मूर्तियां निकल आई तिसका प्रतिष्ठा महोत्सव सहित पंचमी तप का उजमणा महोच्छव भी यहां आकर कुंकम पत्रिका द्वारा श्री संघ को एकत्र करके बड़े समारोह से इसी श्राविका ने पुष्कल द्रव्य खरच के किया । यह शिलालेख पंन्यास श्री संपदविजयजी गगी ने लिखा । यह लेख मांडवगढ़कें जैन कारखाने के कंपाऊंड के अंदर प्रवेश करते ही शुरू के बड़े दरवाजे के दाहिने तरफ की दरवाजे की शाख ( दीवाळ ) में लगा हुवा सफेद पाषाण को फरसीपर खुदा हुवा होकर रास्तेगीरां को देखने में आता रहता है । (९) संवत १९६४ वर्षे वैसाख शुक्लपक्षे दशमी तिथौ श्री मंडपदुर्गे धार नरेश श्रीमदुदाजीरावविजयराज्ये श्री तपागच्छालंकार भट्टारक श्री विजयानंदसूरीश्वराणां पंडित प्रवर श्रीयुत लक्ष्मीविजयमुनिपुंगवानां सुशिष्य मुनीश श्री हंसविजयोपदेशात् श्री खानदेशस्थासलनेर वास्तव्य तपागच्छीय श्रावक श्रेष्ठ रूपचंद्र मात्रा श्रीमती चूनाबाई श्राविक्या स्वभगिनी For Private And Personal Use Only

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