Book Title: Jain Sahitya Samaroha Guchha 1
Author(s): Ramanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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जैन साहित्य समारोह
प्राकृत भाषा का एक दूसरा छोटा सा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है - 'द्रव्यपरीक्षा' । १४ वी शताब्दी के बादशाह अलाउदीन खिलजी के कोषाध्यक्ष भंण्डारी ठकुर फेरुने सर्वजनोपयोगी विषयो के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ बनाये हैं । ङनमें 'रत्नपरीक्षा', 'धातुत्पत्ति', 'गणितसार', 'ज्योतिषसार, 'वास्तुसार' के साथ ही 'द्रव्यपरीक्षा' भी एक है । इसमें उस समय की भारतीय मुद्राओं की इतनी महत्त्वपूर्ण जानकारी देनेवाला यह एकमात्र ग्रन्थ है । ठक्कुर फेरु के 'अज्ञात ग्रन्थों की खोज हमारे द्वारा ही हुई है और इस ग्रन्थो का संग्रहग्रन्थ 'राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान', जोधपुर से प्रकाशित भी हो चूका है । 'रत्नपरीक्षा' को तो हम सानुवाद अन्य सामग्री के साथ प्रकाशित भी कर चूके हैं । 'क्रयपरीक्षा' और ' धातूत्पत्ति' सानुवाद वैशाली इन्स्टीट्यूट से प्रकाशित हो रहा है ।
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जैन संस्कृत साहित्य में भी ३ ग्रन्थ विश्वसाहित्य में अपने ढंग के एक ही है । इनमें पहला है १० वी शती के सद्धर्षि-रचित 'उपमितिभवप्रपंच कथा' । इतना बडा रूपककोष विश्वभर में इस तरह का अन्य कोई भी नहीं है । स्व. नाथूरामजी प्रेमी ने इसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की है । दूसरा ग्रन्थ है- 'अष्टलक्षी', जो सम्राट अकबर की लाहोर सभा में महोपाध्याय समयसुन्दर ने संवत १६४८ में प्रस्तुत किया था । इस ग्रन्थ में 'राजानो ददते सख्यम्' इन आठ अक्षरों
अर्थ किये हैं । रचयिता ने
वाले वाक्य के १० लाख से भी ज्यादा लिखा है कि कई अर्थसंगति में ठीक नहीं बैठे हो तो वैसे २ लाख अर्थो का बाद देकर भी ८ लाख अर्थ तो इन में व्याकरणसिद्ध है ही । इसी लिए इसका नाम 'अष्टलक्षी' रखा है । यह ग्रन्थ भी देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत से प्रकाशित 'अनेकार्थ - रत्नमंजूषा ' में प्रकाशित हो चूका है ।
महाकाव्य ' का । यह
तीसरा : अपूर्व ग्रन्थ है 'सप्तसंधान १५. वी शताब्दी के महान विद्वान उपाध्याय मेघविजय रचित है। इसमें
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