Book Title: Jain Prarthanamala Part 01
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Jain Dharm Pravartak Sabha

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Page 16
________________ (१४) तत्रीऋषभादयोजिनवरा:कुर्वतनो मंगलं ॥ यस्मा तीर्थमिदं प्रसिद्धमगमत्सश्रीसुधर्मागुरू धन्योधन्यमनि:सकौशलमनि:श्रीशालिभद्रामि मेताया ऽ दृढप्रहारस्यति मधोदशाणाभिध: श्रीमंत:करकंडमरूपयतय:कुर्वन्तनोमंगलं ॥ श्री जंबु:प्रभवप्रभुगतभय: राप्यं भव:श्रीयशो भद्राख्य श्रुतकालीच चरम:श्रभिद्रवाहगुरू: शोलस्वर्णकपोपल:सुविमल श्रीस्थलभद्रप्रभुः सर्वे ऽण्यार्यम हागिरिप्रभृतय:कुर्वन्तुनोमंगलं ॥ ब्राह्मीचन्दनबालिकाभगवतिराजिमतिद्रीपदी कौशल्याचमृगावतीचसुलसासी ताचभद्राशिवा कुंतीशीलवतीनलस्यदयिताचलाप्रभावत्यप पद्यावत्ययापसुदंरीदनमुखकुर्वन्तुनोमंगलं ।।

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