Book Title: Jain Prarthanamala Part 01
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Jain Dharm Pravartak Sabha

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Page 95
________________ नथी. जेने वाहन अर्थे नथी गरूड के नथी सिंह नथी ब ळद के नथी चाप; जे जीन हर्ष, शोक, मोह, जन्म. मरण आदि विटवनाओथी मुक्तछे; जेनां निदवा ला यक कर्मोथी लोकोमा बाहवाह वरताइ नथी, जेना शरीरे, शीरे के ऊरस्थळे, गौरीनो, गंगानो के लक्ष्मीनो स्पर्श नथी; परंतु जे इच्छा वियुक्तने शीय सुंदरी वरीछे तेज केवळ परमात्मानुं हुं ध्यान धरूई जगजंतुरक्षासदक्ष! सदाचारकासारहंस ! चतवंग संसिद्धिदाता! परब्रह्मशमप्रदाता! लसल्लब्धिलिलालय! धामना खोटाढोगी तथा क्रियादभथी अमने दूर राख; अविचारथी अळगाकरी, अहंकार , मिथ्याभिगान, गर्व आदथिी मकाय. तथास्त!!!

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