Book Title: Jain Prarthanamala Part 01
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Jain Dharm Pravartak Sabha

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Page 83
________________ ॥अजितनाथ ॥ अशोकवृक्षादि आठ प्रातिहार्य, तथा मूळातिशय मकी द्वादशगुगगणालंकृत ! मोहादिरिपुजीती जयप ताका उडावनार! अजितानिन!! जे हमेश रथमा बेशी करता, जेनी आगळ चोपदार ने की पुकारता, ने ना उपर छानी छाया तैयारज हती, जे हरनिश मु. वर्णमय रत्न जडित्र आसने बेसी छत्रीसी जमता, जे विशाळादव्य भवनोमा रही अत्यंत सुख भोगवता, जे ओनी आणा राणा रंक सुधीने मान्य हती, ओए उ खंड जीती पोतानी आप सर्वत्र मनावी हती चकवार्तओने, तथा तेथी पण ऊत्कृष्टां सख भोगवना र देवताओने, पण कृतांतना डाचा तळे दवायी आश्रयार्थे अथडातां बीजं कांइपण जडयं नहि,तो अग

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