Book Title: Jain Prarthanamala Part 01
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Jain Dharm Pravartak Sabha

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Page 90
________________ अमारी वात्त स्थिर राखवा सरल रस्तो बताव. शविर द! शांति कृत! कांतिमान् ! कामितप्रद! मुनिपुंगव!! ता रापीयषसम अ पदशन पान कर्या विना पागर प्राणीओ "आ जगतनो की पालक, तथा संहारक, एक, नि त्य सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान परमेश्वरछे." एवी आ स्वयंसिद्ध जगत संबंधी असंख्य असत कल्पनाओ करेछे. क्षीणाष्ठकर्मा! बोधिद !! प्रभाकरना प्रकाश थी जेभ तिमिरपटल दूर टळेछे तेम तारा अनंत ज्ञान रुप विना प्रकाशथी अमारु मोहतिामर दूर करावी निज स्वमपे प्रकाशवा प्रवृत्तकर! तथास्तु!!!

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