Book Title: Jain Prarthanamala Part 01
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Jain Dharm Pravartak Sabha
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॥ नमः॥ भोकारंबिंदुसंयुक्तनित्यंध्यापन्ति योगिनः मोक्षदकामदंचैवओंकारापनमोनमः ॥ মানানমিহামান লিলনায্য नेत्रमन्मीलितंयेनतोश्रीगुरवेनमः॥
य:सर्वेनरनाकिनानागपवर नासदामान्यते सवैचापिहरीश्वरादि कसुरादासीकतायेनवा स:श्रीमान्मकरध्वजोविनमितोवैधामिर्धाधने: तानश्रीतोर्यकरानप्रवर्तकसभास्नेहात्सदाशेवते ॥
प्यातोष्टापदपर्वतीगजपदःसमेत शैलाभिधः श्रीमावत कासिमहिमाशत्रुगय पावकः। बैंभारोचिपुलोऽवदोगिरियर श्रीचित्रकूटाचल,

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