Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ ॐ अर्हम् ॥ अवतरणिका । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ पुस्तकमा प्राचीन आचार्यवरो विरचित स्तवनोनो संग्रह करवामां आव्यो छे. जे खास करीने पठनीय साथे उत्तम भाव सूचक तेमज चित्तो ह्रासता प्रगट थवामां साधनभूत होइ सर्व जैन धर्मानुरागी साधु-साध्वी - श्राद्धवरो तथा सुशीला श्राविकाओने कंठःस्थ करवा योग्य छे. आधुनिक समयमां लगभग सर्वत्र नूतन पद्धतिथी रचायला स्तवनो देवालयोमां या धार्मिक अनुष्ठानोमां कहेवानो प्रचार विशेषतः थतो होय एम दृष्टि गोचर थाय छे परन्तु सांप्रत समयना नवीन स्टाइल ( Style) ना बनावेला स्तवनो कहेवाथी आपणा मनो मंदिरमां उक्त जेवो चित्तोल्लास प्रगटवो जोइए तेवा आन्तरीक उल्लासनी उत्तम भाव सूचक स्फुरणाओ उद्भवती नथी यातो उत्तम भाव पण दृश्य थतो नथी किन्तु केवल शुष्कवत् अने असंबद्ध भासे छे ज्यां सुधी जिन मंदिरमां के धार्मिक अनुष्ठानोमां स्तवनो गावाथी आन्तरीक उल्लासनी स्फुरणा न थाय तेमज तेथी | उद्भवतो उत्तम भाव पण न जणाय त्यां सुधी गमे तेटलो समय कंठ शुष्क करी करीने पण करेली क्रिया यथार्थ साफल्यकारक थती नथी ए वात प्रत्येकं सुज्ञ विद्वज्जनो सुरीतिए समजे छे. अत एव आवा पूज्यपाद प्रवर जैन धर्म धुरंधर प्राचीन आचार्यवरोकृत स्तवनो कहेवानो प्रचार सर्वत्र थवानी खास For Pitvale And Personal Use Only

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