Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04 Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 5
________________ प्रस्तावना. था जैनकथा रत्नकोष संझक संग्रहीत ग्रंथना जुदा जुदा पन्नर नाग बापीने प्रसिध्द करवानो जे महारो निश्चय के ते मांहेलो आ चोथो नाग निर्विघ्नपणे नापीने विवेकी वांचनारानी आगल मूकतां जेम माता पिता नी आगल बालक पोतानी नांगीटूटी बोबडी नापामा प्रतिदिवस वातो कस्या करे तेम महारामां ते बालकनी पेठे यथार्थ गुजरातीनाषा लखवानी शक्ति नथी तोपण प्रत्येक नाग बाहेर पाडती वखतें ते वांचनारा साहे बोनी आगल जे कां महारे बोलवानी वा थाय तेने ढुं ते जागनी प्र स्तावनामां जेवी तेवी मिश्रण नापामां लखी जावं . आ जागमां महारे लखवानुं एटझुंज डे के में जे कांश या पुस्तकना चार नाग नापी बाहेर पाड्या ते ऊपरथी हुँ अनुमान करुं बुं के कमें करी महारा बोलवा प्रमाणे समग्र नागो बापी पूर्ण करीश जोपण हुँ अद्यापि सुधीआ पुस्तकना अगाउथी ग्राहको करवा माटे कोइने घेर सही कराव वा गयो नथी तो पण दीर्घविचारवान अने झानना सुखने जाणनारा सऊ नो महारे घेर वेता मने बापवाना काममां कांपण अडचण न नाखतां पोतानी मेले आवी पुस्तकना ग्राहक थइने रूपैया पलीशनी रकम पापी जाय तेवा महारा बापवाना उद्यमने उत्तेजन आपनारा साहेबोनाम नना मनोर्थ सफल थवानी साथें आ ज्ञानवृदिरूप सर्वोत्तम कार्य पूर्ण थ वाथी महारा मनने ढुं महोटो आनंद पमाडीश. अने बीजा पण एवा एवा उत्तम प्रकारना ग्रंथोने बापी प्रसिद्ध करवाने शक्तिमान थइश. वली तेवा ग्रंथो महारे हाथें लखाइने उपायाथी महारामां प्रमादनी न्यूनतां थ वानी साथै ते सर्वग्रंथो महारा वांचवामां पण सारीरीतें अावशे तेथी ते ग्रंथोना विषयोन क्वचित् जाशपणुं पण महारा क्योपशमानु सारें मने थाशे इत्यादि अनेक वातो मने हर्ष ऊपजावनारी थाय दे.. यद्यपि महारी कबुलात मुजब महोटा सुपररांयल कागलें बाउसो स वाघाशो फरमां बापीने हजार पुस्तकपूर्ण करतां तेना पंदर हजार पुगे बंधावतां लगनग बावीश हजार रूपैयानी रकम काहाडवी पडे अने तेनी ऊपर वली व्याज जाडा प्रमुख खरच थाय ते जुदा गणाय अने ग्राहकतोPage Navigation
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