Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 16
________________ ४ जैनकथा रत्नकोष नाग चोयो. स्थापवा तथा काष्ठ ते मांझी पाटली प्रमुख स्थापवी, तथा पुस्तक स्था पवां अथवा लेपमय गुरुमूर्ति स्थापवी. अथवा गुरुमूर्त्तिना चित्रामणरू प स्थापवां. एरीतनी स्थापना स्थापवी बने गुरुने योगें तो गुरुनीज स्था पना करवी. परंतु गुरुने अनावें इत्वर एटले कियत्काल पर्यंत काष्ठादिक नी स्थापना करवी. यावत्कथिक ते जिहां सुधी ते इव्य होय तिहां सुधी गुरुने अनावें व्यनावनी स्थापना याचार्यादिकनी स्थापवी. ते मा टे गुरुने अनायें सामायिकना करनारा जे श्रावक, तेमणे जे प्रमाणे शा स्त्रोमां विधि कह्या ,ते विधियें करीने स्थापना अवश्य करवी. इति सिक्षम्. हवे सामायिकना करनारा श्रावकें चरवलो मुहपत्ति प्रमुख धर्मोपकर ण ग्रहण करवां, तेमज श्रीअनुयोगहार सूत्रने विषे कडं . जे लोकोत्तर नाव आवश्यकने करता एवा जे साधु, साध्वी, श्रावक बने श्राविका ते एक आवश्यकमांज चित्त, तेमांज मन, तेमांज लेश्या, तेमांज अध्यवसा य, तेनाज अर्थनो उपयोग, तेनाज साधन राखतो, बीजा कोइ स्थानकें मनने न राखतो, एवो थको उनयकाल पडिक्कमणुं करे, तिहां तदप्पिय करणे' ए पदनो अर्थ चूर्णिकार आ रीतें कहे . के ते आवश्यकना साध न जे शरीर, चरवलो, मुहपत्ति प्रमुख मुखकोशादि इव्य ते सर्व क्रिया क रवाना साधनने तदप्पियकरण कहीयें. वली तेज पदनी व्याख्या श्रीहरि जइसरिनी तथा हेमाचार्यनी करेली टीकामां कह्यु जे के तदप्तिकरण ते धर्मना सघला साधन जेवां के रजोहरण, चरवलो, मुहपत्ति प्रमुख प्राव श्यकने विषे जे उचितव्यापारने कारणे स्थाप्यां , ते सघलां धर्मनां कार रूप जाणवां. ए सर्व तदप्पिय करणनो अर्थ जाणवो. रूडी रीतें जे जे ठेकाणे जे जे उपकरण जोश्ये, ते ते तिहां स्थापवा अथवा राखवां. तथा आवश्यकचूर्णीने विषे सामायिक अधिकार मांहे कडे , के जे श्रावक होय ते साधुनी पासेंथी चरवलो कांबली मागीले,अथवा घरथकी लावेलो संधारित्रं चरवलो होय ते ले. तेमाटें श्रावकने कांबली मुहपत्ति अने चरवलो जेवां घटसान . एनो विशेषयुक्तिनो विस्तार पूज्य श्रीकुल मंझन सूरिप्रणित सिद्धांतना बालावानो विचारसंग्रह ग्रंथ डे, तेथी जाणवो. तेमज बीजा परा अनेक ग्रंथनी साख , ते माटे श्रावकें सा मायिक करवाने अर्थ चरबलो, मुहपत्ति, संथारीनं. ए सर्व ग्रहण करवां.

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