Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04 Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 7
________________ जनकप्यारत्नकोषा ॥अथ वंदितासूत्रना बालावबोधनी अनुक्रमणिका प्रारंनः॥ क्रमांक. विषय. दृष्टांक. १ ग्रंथ प्रारंनमां मंगलाचरण. .. २ स्थापनाचार्य स्थापवानो विधि, आशंका समाधान सहित. २ ३ सामायिक करनारें चरवलो मुहपत्ति अवश्यलेवानो निरधार. ४ ४ वंदितासूत्र कहेवानो श्रावक आश्रयी विधि. .... .... ५ वंदितानी पहेली गाथामां श्रीसिनगवानना पंदर नेद. .... ६ ६ श्रावक शब्दनो तथा अतिचार अने प्रतिक्रमणनो अर्थ. .... G ७ बीजी गाथामां अतिक्रमादिना अर्थ तथा अतिचारनी संख्या. ए ज्त्रीजी गाथामां सर्व अतिचारोनी उत्पत्ति परिग्रहथकी थाय ने. ११ ए चोथी गाथामां झानना अतिचार पडिक्कमतां पांच इंडियने प्रत्येकें प्रशस्त अने अप्रशस्त ने मृगादिकना दृष्टांतें, वर्णव्युं . १२ १० इंडियो वशराखवा बने न राखवा ऊपर बे काचबानी कथा. १५ ११ क्रोधादिक चार कपायर्नु प्रशस्त अप्रशस्त नेदें करी वर्णन त दंतर्गत प्रतिज्ञा करेली होय ते हरिचंदराजानी पेरे न.मूकवी. १५ मनादि त्रणयोगर्नु प्रशस्ताप्रशस्तपणुं दर्शाव्युं . .... .... १३ कामादि त्रणरागनुं स्वरूप तथा रागषर्नु प्रशस्ताऽप्रशस्तपणुं. १४ पांचमी गाथामां दर्शनाचारना अतिचार पंडिकम्या . .... १५ बहीगाथा मूलपावें नूलथी लखाइ के पए तेना अर्थमा सम केतना लक्षणादि सर्व बठी गाथानी हेडींगमा दोवाश्री खरा ने. १६ समकेतनी कपर जय अने विजय राजानी महोटी कथा.....Page Navigation
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