Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ G अनुक्रमणिका. १०५ पांत्री शमी गाथायें अतिचारने विशेपथी त्रण योगें पडिक्क म्या एमां गारव, मद, चारथी शोल संज्ञा तथा कषायादिक नां स्वरूप ने तेनी ऊपर संदेपथी एक एक पुरुषनी कथा ४३३ १०६ बत्रीशमी गाथायें व बेश्यादिनां स्वरूप दृष्टांत सहित वे. ४३७ १०० साडीशमी गाथायें यद्यपि सम्यकदृष्टि जीवोने अल्पबंध पडे ४४२ वे ते पडविध व्यावश्यक करवायी टूटे, इत्यादि विषयो लें..... ४४० १०० डी मी गाथायें यविरा मोसीने दृष्टांतें पूर्वी बात बे. ४४१ १०० जंगलचालीशमी गाथायें पण तेज आलोचवानो अधिकार बे. ११० चालीशमी गाथायें लखमला साध्वी व्यादिकनां दृष्टांतो बे. १११ एकतालीशमी गाथामां पडिक्कमलानुं फल कहां ते. ११२ वेतालीशमी गाथायें वीसरी गयेला प्रतिचार पडिक्कमवानो. ११३ त्रेतालीशमी गाथायें जाविजनने नमस्कार कस्यो वे. ११४ चुम्मालीशमी गायायें शाश्वत अशाश्वतजिनने नमस्कार . ४४ ११५ पीस्तालीशमी गाथायें सर्व साधुने वंदन करयुं छे. ११६ बेंतालीशमी गाथायें अनागतकानें शुन वांग राखवी कही वे. ४५० ११७ सडतालीशमी गाथायें जवांतरें समाधिबोधनी प्रार्थना के ए मां ज्ञान क्रिया बेन तुल्यता तथा सम्यकदृष्टि देवोने समा पवानुं समर्थन याशंका समाधानपूर्वक कयुं ले. ४४८ ४४ • ४५० ११ ११८ खडतालीशमी गाथायें जो व्रत न होय तो पण पडिक्कमणुं करे. ४५३ गणपञ्चाशमी गाथायें चारे गतिना जीवो साथे वैरं खमा aj ने एम चेडामहाराजा तथा कोलिकना युद्धमां केटला मासोनो संहार थयो ने तें कई क गति पाम्या इत्यादि. ०५३ १२० पञ्चाशमी गाथायें श्रावकने पडिक्कमणुं करयुं जगवानें नथी कह्यं इत्यादि विसंवादियोंने सनी लाखे निरुत्तर कथा वे. ४५५ १२१ ग्रंथकर्त्ताना गुर्वादिकनी पट्टावली तथा तेने ठापवानी हकीगत. ४५६ १२२ नोकरवालीनो सधाय तथा प्रस्ताविक दोहा. १२३ गुरुशिष्य प्रश्नोत्तर बत्रीशी. ४६० ४६२ १२४ देवनगरी लीपिर्मा बाला पुस्तकोनी यादी. ४ ६४ .... • .... .... ४४३ ४४५ ४४८

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