Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 13
________________ ॥ श्रीगौतमादि सशुरुभ्यो नमो नमः॥ अथ श्रीश्रावकस्य वंदित्तास्त्र अथवा प्रतिक्रमण सूत्र अपरनाम अर्थदीपिका तउपरि श्रीरत्नशेखर सूरिकत टीकानो बालावबोध कथा उसहित पारंन करियें .यें. तेमां प्रथम टीका करनारना करेला मांगलिकनें अर्थे उ श्लोको लखे जे. ॥श्लोक ॥ ॥ जयति सततोदयश्रीः, श्रीवीरजिनेश्वरोऽनिनवनानुः ॥ कुवलयबोधं विदधति, गवां विलासा विनोर्यस्य ॥१॥ श्रुतजलजलधीन बदुविध, लब्धी न् प्रणिदध्महे गणधरेंशन ॥ श्रुतदेवतां च विश्रुत, गुणैर्गरिटानिजगुरुच ॥ २ ॥ श्रीसोमसुंदरगुरु, प्रवराः प्रथितास्तथा गणप्रनवः ॥ प्रतिगौतमतः संप्रति, जयंति निःप्रतिममहिमनृतः॥३॥ तेषां विनेयषनाः नाग्यनुवो जुवनसुंदराचार्याः ॥ व्याख्यानदीपिकाधैर्यथैर्ये निजयशोऽग्रंथन् ॥ ४ ॥ ते षामेषोंऽतिषदं, तिमः किमप्यादधाति सुखबोधां ॥ वृत्ति स्वपरहितार्थ, गृहि प्रतिक्रमणसूत्रस्य ॥ ५ ॥ विधिग्रंथकतामहमि, जन्मकोपि नोपदास्यास्यां ॥ खद्योतोपि द्युतिम, पंक्तौ प्रविशनिवार्यः किं ॥६॥ जावार्थः-निरंतर ने उदयनी शोना जेनी,नवीन सूर्यसंमान एवाश्रीवीरनगवान् जय पामे जे. कारण के समर्थ एवाजे नगवान तेनी वाणीना विलासोजे ,ते पृथ्वीतल गतलोकोने बोध करे . अर्थात् था जे प्रसिद सूर्य ,ते मात्र कमलनेज पोताना किरणोथी विकसितं करे , ने वीरनगवान तो अखिी पृथ्वीना व लयने बोध एटले निकसित करे ले ॥१॥ वली श्रुतरूपजलना समुश् तथा अनेक सब्धियोजेने एवा गणधरेंशे तथा उत्तमगुणोयें करी मोहोटी एवी श्रुतदेवता, तथा अमारा गुरु तेने हुँ हृदयमां धारण करुं बुंअर्थात् तेमनुं ध्यानकरुं ढुं॥॥ विख्यात तथा गणना स्वामी,हालना समयमांगौतमगण धरतमान, अत्यंतमहिमाने धारण करनारा श्रेष्ठ एवा जे श्रीसोमसुंदर गु

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