Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04 Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 6
________________ २ प्रस्तावना. श्राजदिवस सुधी लगभग सवाबशो पुस्तकोनां थयेलां बे. तेमनी पासेथी मात्र खरचना चतुर्थाश जेटलांज नाणां महारा हाथमां यावी शको माटे ते विचारमां केटलोएक वखत व्यर्थ गमाववो पडे बे. तो पण महोटा धना ढ्य साहेबोनो शरो जेवाने ज्यां सुधी हुं तेमनी पासें गयो नथी त्यां सुधी महारी धैर्यता मने ए कामथी पाहूं हटवा देती नथी. वाली बीजा पल संसारी जीवोनी पेठे मने. पण शत्रु उत्पन्न संचाना तथा रोग शोकु वियोग जरा मृत्यु यादिक अनेक विघ्नो प्राप्त थवानी हरहमेस चिंता रहेज बे परंतु ज्ञान ने ज्ञानीउनी कृपाथी ते सर्वविघ्नोनो ध्वंस थाशे. या पुस्तकमां श्रावकना बारेव्रतना यतिचारोनुं निरूपण करतां ग्रंथकर्त्तायें अन्यदर्शन ने बोध पमाडवा माटे घणा स्थलें अनेक विषयोनां उदाहरणमां तेमना ग्रंथांना ठेका ठेकाणे घणाएक श्लोको दाखल कीधा बे. तेमज मि यात्व लोकोनां होरी प्रमुख अनेक पर्वोथी उपजता दोष पण देखाड्या बे. वली प्रतिचाररहित व्रत पालन करनारा एवा महापुरुषो जे पूर्वै थइ गयेला बे तेमनी महोटी महोटी कथा विस्तार सहित या ग्रंथमां प्रत्ये कतनी ऊपर श्रावेली बे तथा प्रसंगे प्रसंगे न्हानी न्हानी कथा तो घ जावेली ते सर्व कथा वांचनारा साहेबोने व्रत लेवानी तथा ली घेला व्रतने तिचार रहित पालवानी पुष्टि करवानी साथे विचित्र प्रका ना बनवा रस उत्पन्न करनारी तथा पूर्वला जमानामां थइ गयेला रा जाने व्यापारीनी चालचलगत दर्शावनारी होवाथी अत्यंत आनंदनी साथे चमत्कार, उपजावे एवी ने माटे साधुश्रावकादि चतुर्विध श्रीसंघ ए ग्रंथ वांचवा धर्मी पुष्टि थवानी सोधें बुद्धिनो विस्तार पण बहुज थशे. वली बाल जीवोने अनेक बाबतोमां उपजती शंकाउंनां समाधान पण श्राग मादि महाशास्त्रोने अनुसारें करेलां होवाथी श्रावकना पडिक्कमणादिक पडाव श्यक रूप नित्यकर्त्तव्यनुं स्वरूप निःशं कितपणे यथार्थ समजवामां आवशे. या ग्रंथना बनावनार याचार्य श्रीरत्नशेखरसूरिनुं नाम तेमना गुर्वा दिकनी पट्टावली सुद्धा ग्रंथना अंतमां यान्युं वे अने ग्रंथने बापवा संबंधि नी केट लिएक हकीगत तथा ए ग्रंथ बापतां महाराथी रहेली अशुद्धता प्रमुखनां दोषोनो मिलाक्कड इत्यादिक वाबतो या ग्रंथनी समाप्तिना यंत मां लखी जावी बे' मांडे यांही लखतो नथी किंबहु विलेखनेन.Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 477