Book Title: Jain Hitopadesh Part 2 and 3
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
(१५०) मुमुक्षु जनोए अकृत, अकारित अने असंकल्पितज आहार गवेषीने ग्रहण करवो जोइए. पोते नहि करेलो नहि करावेलो तेमज पोताने माटे खास संकल्पीने गृहस्थादिके नहि करेलो के करावेलोज आहार मुमुक्षु जनोने कल्पे छे. तेवो पण आहार गवेपणा करतां मळी शके छे.
(१५१) यति धर्म याने मुमुक्षु मार्ग अति दुष्कर को छे केमके तेमां एवा निर्दोष आहारथीज संयम निर्वाह करवानो कह्यो छे. __(१५२) गृहस्थ जनो पोताने माटे अथवा पोताना कुटुंबने माटे अन्न पानादिक नीएजावता होय तेमां एवो शुभ विचार करे के आपणे माटे करवामां आवता आ अन्न पाणीमांथी कदाच भाग्य योगे कोइ महात्माना पात्रमा थोडं पण अपाशे तो मोटो लाभ थशे. आवो शुभ विचार गृहस्थ जनोने हितकारीज छे.
(१५३) एवा शुभ चिंतन युक्त गृहस्थोए पोताने माटे के पोताना कुटुंबने माटे नीपजावेला अन्न पाणी विगेरे मुमुक्षु मुनीने लेवामां वाधक नथी.
(१५४) निर्दोष आहार लावी विधिवत् ते वापरनार मुनि संयमनी शुद्धि करी शके छे. तेथी उलटी रीते वर्ततां संयमनी विराधना थाय छे.

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