Book Title: Jain Hitopadesh Part 2 and 3
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 388
________________ १७२ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. (१६१) मुमुक्षुजनोए गमे तेवा संयोगोमां संयमथी चलायमान थर्बु न जोइए. देव, मनुष्य के तिर्यंचे करेला सर्व अनुकूळ के पतिकूळ उपसर्ग परीषहोने अदीनपणे आत्म कल्याणार्थे सहन करवा 'जोइए. (१६२) मुमुक्षुजनोए मार्गमां चालतां धुसरा प्रमाण भुमीने आगळ जोतां कोइ पण न्हाना के मोटा जीवने जोखम न पहोंचे तेम करुणा नजरथी तपासीने चालवू जाइए. __ (१६३) मुमुक्षु जनोए जरुर पडतुं बोलता कोइने अप्रीति न __उपजे एवं हित मित मिष्ट अने सत्य धर्मने वाधक न थाय तेवू भा‘षण करवू जोइए. ___ (१६४) मुमुक्षु जनोए संयमना निर्वाह माटे जरुर पडये छते ४२ दोष रहीत आहार पाणी विगेरे गुर्वादिकनी संमतिथी लावीने विधिवत् वापरवां जोइए. __(१६५) मुमुक्षु जनोए कोइपण वस्तु लेतां या मूकतां कोइ पण जीवनी विराधना थइ न जाय तेम संभाळीने ते वस्तु लेवी मूकवी जोइए. (१६६) मुमुक्षु जनोए लघुनीति वडीनीति विगेरे शरीरना सर्व मळनो त्याग निर्जीव स्थानमां जइने विधिवत करवो जोइए.

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