Book Title: Jain Hitopadesh Part 2 and 3
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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१८२ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
(२३२) ग्रहण करेलां व्रत या महाव्रतने अखंड पाळनार स_ मान कोइ भाग्यशाळी नथी, तेनुंज जीवित सफळ छे.
(२३३) ग्रहण करेलां व्रत के महाव्रतने खंडीने जे जीवे छे तेनी समान कोइ मंदभाग्य नथी. केमके तेवा जीवित करतां तो ग्रहण करेला व्रत के महाव्रतने अखंड राखीने मरवुज सारुं छे.
(२३४) जेने हितकारी वचनो कहेवामां आवतां छतां विलकुल काने धारतो नथी अने नहिं सांभळ्या जेवू करे छे तेने छते काने व्हेरोज लेखवो युक्त छे. केमके ते श्रोत्रने सफळ करी शकतो नथी.
(२३५) जे जाणी जोइने खरो रस्तो तजीने खोटे मार्गे चाले छे, ते छती आंखे आंधळो छे एम समजवू.
(२३६) जे अवसर उचित प्रिय वचन वोली सामानुं समाधान करतो नथी ते छते मुखे मूंगो छे, एम शाणा माणसे समजवं. ' (२३७) मोक्षार्थी जनोए प्रथमपदे आदरवा योग्य सद्गुरुर्नु वचनज छे.
(२३८) जन्म मरणना दुःखनो अंत थाय एवो उपाय विचक्षण पुरुषे शीघ्र करवो युक्त छे केमके ते विना कदापि तत्त्वथी शांति थती नथी.

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