Book Title: Jain Hitopadesh Part 2 and 3
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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२०४
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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. १०. ज्ञान दान समान कोइ दान नथी, एम समजी सहुए तेमां यथाशक्ति सहाय करवी, तत्त्व ज्ञाननो फेलावो थवा पामे तेवो प्रबंध करखो, केम्के शासननी उन्नतिनो खरो आधार तत्त्वज्ञान उपरजछे.
११. जैनी भाइ बहेनोमां पण केटलाक भागे कळा कौशल्यनी खामीथी, प्रमादथी तथा अगमचेतीपणाना अभावथी बहुधा नात वरा विगेरे नकामा खर्चा करवाथी दुःखी हालत थवा पामेल छे. ते दूर थाय तेवी देशकाळने अनुसारे उछरती प्रजाने तालीम (केळवणी) आपवी दरेक स्थळे शरु करवानी पूरी जरुर छे.
१२, वीतराग प्रभुनो उपदेश सारी आलमने उपगारी थइ शके एवो होवाथी तेनो जेम प्रसार थवा पामे तेम प्रयत्न कर्या करखो. जिनेश्वर भगवाने आपेली शिखामणोनुं सार ए छे के.
क. सर्व जीवनुं भलं करखा कराववा बनती काळजी राखवी.
ख. सादाइ अने नरमाश राखवी.
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