Book Title: Jain Hitopadesh Part 2 and 3
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
१८१
सहज-आत्म गुणमां मग्न रहेवू एज खरी आत्म दया छ, वीजी औपचारिक जीवदया पाळवानो पण परमार्थ रागादि दुष्ट दोषोने आवता वारवानो अने ज्ञान दर्शन अने चारित्रादिक सद्गुणोने पोषवानोज छे.
(२२७) सत्यादिक महाव्रतो पाळवानो पण एज महान् उदेश छे. यावत् सकळ क्रियानुष्ठाननो उंडो हेतु शुद्ध अहिंसा व्रतनी दृढ़ता करवानोज छे.
(२२८) एवी शुद्ध समज दीलम धारो संयमक्रियामां सावधान रहेनारा योगीश्वरो अवश्य आत्महित साधी शके छे..
(२२९) एवी शुद्ध समज दीलमां धार्या विना केवळ अंधश्रद्धाथी क्रियाकांडने करनारा साधुओ शीघ्र स्खहित साधी शकता नथी.
(२३०) शुद्ध समजवाळा ज्ञानी पुरुषोनो पूर्ण श्रद्धाथी आश्रय लही संयम पाळनारा प्रमाद रहित साधुओ पण अवश्य आत्महित साधी शके छे. केमके तेमना नियामक (नियंता-नायक) श्रेष्ठ छे.
(२३१) सुविहित साधुजनो मोक्षमार्गना खरा सारथी छे एवी शुद्ध श्रद्धाथी मोक्षार्थी भव्य जनोए, तेमनु दृढ आलंबन कर अने तेमनी लगारे पण अवज्ञा करवी नहि.

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