Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 22
________________ ३६० जैनहितैषी।। [ भाग १५ देखकर. या बुरकेके भीतर रूपराशिकी लिये संयुक्त बलके सिर्फ एक ही धक्केकी कल्पना करके ही उसपर मोहित थे, वे प्रतीक्षा कर रही है। ऐसी हालतमें वह भी अब पर्दा (नकाब) उठ जाने तथा भँवरमें क्यों फँसी, गहरे जलमें क्यों उतारी आच्छादनोंके दूर हो जानेले नग्न रूपके गई और क्यो भँवरकी मोर खेई गई, इस दर्शन करके, अपनी भूलको समझने लगे प्रकारके तर्कवितर्कका या किसीके शिकवेहैं, और यह देशके लिये बड़ा ही शुभ शिकायत सुननेका अवसर नहीं है। पार चिह्न है। होने के लिये उसे गहरे जलमें उतरना ही - यह देशकी अग्नि-परीक्षाका अथवा था, दूसरा मार्ग न होनेसे भँवरकी भोर उससे भी अधिक किसी दूसरी उसका स्नेया जाना अनिवार्य था और कठिन परीक्षाका समय है। और इसी इसलिये मॅवरमें फंसना भी उसका प्रवअन्तिम परीक्षापर भारतका भविष्य श्यम्भावी था, यही सब सोच समझकर निर्भर है। यदि हम इस परीक्षा उत्तीर्ण अब हमें अपने संयुक्त बलके द्वारा उसे हो गये-सब कुछ कष्ट सहन करके भी भवरसे निकालकर पार लँघाना चाहिए। हमने शांति बनाये रक्खी और किसी भौर इसलिये प्रत्येक भारतवासीका इस प्रकारका कोई उपद्रव या उत्पात न किया समय यह मुख्य कर्तव्य है कि वह देशकी तो स्वराज्य फिर हाथमें ही समझिये, वर्तमान परिस्थितिको समझकर उससे उसके लिये एक कदम भी आगे बढानेकी देशको उबारने और ऊँचा उठानेका जी ज़रूरत न होगी। और यदि दुर्भाग्यसे जानसे यत्न करे। उसे अपने क्षणिक हम इस परीक्षा पास न हो सके - सुखोपर लात मारकर भारत माताकी हमने हिम्मत हार दी-तो फिर हमारी वह सेवामें लग जाना चाहिए और माताको दुर्गति बनेगी और हमारे साथ वह बुरा पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करानेके लिए उस सलूक किया जायगा कि जिसकी कल्पना महामंत्रका आराधन करना चाहिए जिसे मात्रसे शरीरके रोंगटे खड़े होते हैं। महात्मा गांधीजीने अपने दिव्य ज्ञानके उस समय हम गुलामोसे भी बदतर द्वारा मालूम करके एक अमोघ शस्त्रके गुलाम ही नहीं होंगे बल्कि 'जिन्दा* . रूपमे प्रगट किया है और जिसे भारतकी दरगोर, होंगे और पशुओसे भी बरा जातीय महासभा (कांग्रेस) ने अपनाया जीवन व्यतीत करने के लिये बाध्य किये ही नहीं बल्कि भारतके उद्धारका एकजायँगे। और इस आपत्तिके स्थायी मात्र उपाय स्वीकृत किया है। और वह पहाड़का संपूर्ण बोझ उन लोगोंकी महामंत्र है 'असहयोग'। गर्दन पर होगा और वे देशके द्रोही समझे हम अनेक तरीको अथवा मार्गौसे जायँगे जो इस समय देशका साथ न सरकारको उसके शासन कार्यमें जो देकर ऐसी परिस्थितिको लाने में किसी न मदद पहुँचा रहे हैं, उस मददसे हाथ किसी प्रकारसे सहायक बनेंगे। खींच लेना और उसे बंद कर देना ही देशकी किश्ती (नौका) इस समय असहयोग है। और यह ऐसा गुरुमंत्र है - भंवरमें फँसी हुई है और पार होनेके कि इसपर पूरे तौरसे अमल होते ही कोई भी अन्यायी सरकार एक दिनके * जीते ही कामें दफ़न जैसी अवस्थामें । लिये भी नहीं टिक सकती । प्रजाहित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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