Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 39
________________ पुस्तक परिचय। अंक १२] इस ग्रंथके शुरूमें एक सूचना छापी गई है जयदयाल शर्मा, संस्कृत प्रधानाध्यापक इंगर जिससे मालूम होता है कि ग्रंथका परिमाण कालिज, बीकानेर । पृष्ठ संख्या, सब मिलाकर अधिक होनेसे यह ग्रंथ दो खंडोंमें छापा गया है, २६० । और मूल्य, साढ़े तीन रुपये । पुस्तकके परंतु यह वजह कुछ भी मालूल नहीं होती। अन- साथमें १४ पेजका शुद्धिपत्र बहुत खटकता है। गार धर्मामृतका परिमाण इससे कम नहीं था। ६ रत्नेन्दु या पुनर्जीवन-इसमें रत्नेंदु वह प्रायः ७०० पृष्ठका पूरा ग्रंथ एक ही जिल्दमें नामके एक राजाका चरित्र है। लेखक, मुनि श्री छापा गया है और बहुत अच्छा मालूम होता है। तिलक विजयजी पंजाबी। प्रकाशक, श्रीआत्मयदि यह पूरा ग्रंथ भी बम्बईके उसी सुन्दर और तिलक ग्रन्थ सोसायटी, रतनपोल-अहमदाबाद । बारीक टाइपमें छापा जाता तो उसमे भी कम प्रष्ठ संख्या २८ । मल्य, चार आने । छपाई पृष्ठोंमें आ जाता और बहुत खूबसूरत मालूम देता। उत्तम । परंतु हमें यह देखकर अफसोस होता है कि यह ७ पंचमी माहात्म्य-(प्रथम भाग) श्री यंथ कलकत्तेमें मोटे मोटे साधारण टाइप द्वारा महेश्वर सूरिके बनाये हुए मूल प्राकृत ग्रन्थका गुजछपाया गया है। कलकत्तेमें छपवानेसे छपाईके राती अनुवाद । अनुवादक,पं०लालचंद्र भगवानदास। नर्चका जो कुछ फायदा सोचा गया होगा उससे प्रकाशक, अभयचंद भगवानदास गांधी। मिलने अधिकका नुकसान, हम समझते हैं, मोटे टाइपमें का पता. श्रीजैनधर्माभ्युदय ग्रन्थमाला, अहमदाछपनेसे फार्मोंकी वृद्धिके द्वारा हो गया होगा। बादी पोल, बडोदा । पृष्ठ संख्या, ५२ । मूल्य, और ग्रंथ भद्दा छपा तथा उसके दो खंड हो गये, पाठ श्राने। यह बात रही अलग। इस ग्रंथमें भी कागज़ घटिया त्रिभवनदीपक प्रबंध-यह श्रीजय और कमज़ोर लगाया गया है और इतने पर भी शेखर सुरिका नाना छंदोंमें रचा हुआ गुजराती इस आधे ग्रन्थमें ही तीन तरहका कागज काममें भाषाका एक अलंकृत आध्यात्मिक ग्रन्थ है। पं० । लाया गया है जो बहुत ही खटकता है और भद्दा लालचंदजीने इसका संपादन कियाहै और उन्हींकी मालूम होता है। ऐसे महान् ग्रन्थको ऐसी साधा- लिखी हुई एक १४ पेजकी उपयोगी ऐतिहासिक . रण हालतमें छपा हुआ देखकर हमें वह खुशी प्रस्तावना साथमें लगी हुई है । पृष्ठ संख्या, ८० । नहीं हुई जो कि दूसरी हालतमें ज़रूर होती।। मूल्य, आठ आने । मिलनेका पता, वही जो पंचमी (नीचे लिखी पुस्तकोंका परिचय बहत संक्षिप्त माहात्म्यका । रूपसे दिया जाता है । यद्यपि इनमेंसे कुछका मजैन विद्वानोंकी सम्मतियाँविशेष परिचय देनेकी भी हमारी इच्छा थी, परन्तु इसमें जैन धर्म और जैन समाजके सम्बन्धमें दो विसमयाभावके कारण वैसा नहीं कर सके । प्रेषक द्वानों ( श्रीयुत वरदाकान्त मुखोपाध्याय और महाशय हमें इसके लिये क्षमा करें।) रा. रा. वासुदेव गोविन्द प्राप्टे) के कुछ विचारों ५ श्रीमंत्रराज गुण कल्पमहोदधि- का संग्रह किया गया है। संग्रहकर्ता, पं० बिहारी इसमें जिनकीर्ति सरिके पंच परमेष्ठिनमस्कार लालजी असिस्टेंट मास्टर गवर्नमेंट हाई स्कूल, बारास्तोत्रकी व्याख्या हिन्दी अर्थ सहित, णमो अरिहं- बंकी। पृष्ठ, ३० । मूल्य, सवा दो आने। अजैनोंको ताणं पदके गुणरत्न मुनिकृत ११० अर्थ बिना मूल्य। भाषानुवाद सहित, योगशास्त्र और नमस्कार कल्पसे १०शालोपयोगी जैन प्रश्नोत्तरउद्धृत अनेक विषय, नवकार मंत्रसंबंधी प्राव- इस नामकी गुजराती पुस्तकका हिन्दी अनुवाद । श्यक विचार और मंत्रराजमें सत्रिविष्ट सिद्धियोंका अनुवादक, डा० धारशी गुलाबचंद संघाणी । प्रयोवर्णन, इतने विषय हैं । लेखक और प्रकाशक, पं० जक व प्रकाशक, कामदार झवेरचंद जादवजी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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