Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 31
________________ अङ्क १२] समाजिक संवाद । ३8 चारके डरसे अन्य धर्मी हो गये हों वे कालाबाधित नहीं है। समाज ही स्वतः प्रायश्चित्त करके फिर अपने धर्म में लाये धर्म बनाता है। बहुतों का ख्याल है कि जा सकते हैं। इस निर्णयसे जो हिन्दू - मनुस्मृति त्रिकालाबाधित है, परन्तु यह भ्रम है। उसमें यदि कुछ बातें नित्य हैं मुसलमान, ईसाई आदि बन गये हैं वे फिर तो कुछ अनित्य भी हैं। जब प्राचार बराहिन्दू बनाये जा सकेंगे। अस्पृश्यताके बर बदलता जा रहा है तो स्मृति भी सम्बन्धमें पूरा निर्णय तो परिषद् के प्रा. बदलनी चाहिए, ऐसा कहना धर्मके . गामी अधिवेशनमें प्रकट किया जायगा; परन्तु अभी यह कहा गया है कि कुछ ठीक है कि हिन्दू धर्म चातुर्वण्ये विरुद्ध बलवा करना नहीं है। यह खास खास मौकोपर अस्पृश्यता नहीं माननेके प्रमाण मिलते हैं । यथा पर अधिष्ठित है। एक समाजके नष्ट हो जाने पर दूसरा भी नष्ट न हो जाय, देवयात्राविवाहेषु यज्ञप्रकरणेषु च। इसके लिए यह रचना की गई है। उत्सवेषु च सर्वेषु स्पृष्टास्पृष्टिर्न विद्यते॥ परन्तु जिस तरह जहाजमें मुसाफिरोंके ' अर्थात् देवयात्रामें, विवाहों में, यज्ञ लिए जुदा जुदा कमरे होते हैं, फिर भी वे प्रकरणों में और सारे उत्सवोंमें छुआछूत डेक पर एक जगह जमा हो सकते हैं, उसी नहीं मानी जाती। परन्तु अभी तक अस्पृ. तरह ऐसा सुभीता होना चाहिए कि चारों श्यताको सर्वथा न मानने के सम्बन्ध वों के लोग एक जगह इकट्ठे हो सके। कोई प्रमास नहीं मिला है। हिन्दू राष्ट्रकी दृष्टिसे मनुष्य संख्या बढ़ाना श्रीयत दिवेकर शास्त्रीने अपनी एक इष्ट है । ऐसी दशामें जो पतित हो गये हैं महत्वपूर्ण योजना परिषद में उपस्थित की उन्हें अपने में फिर मिला लेना चाहिए। बल्कि दूसरे धर्मवालोको भी अपने धर्मथी जिसे तीन चार शास्त्रियोंने पुष्ट भी ___ में लानेका द्वार खुला रखना चाहिए । किया था। इस योजनामें पतित पराव ऐसी व्यवस्थाके बिना हिन्दुओका ह्रास तन कराना, समुद्रयात्रा और परदेशगमन निषिद्ध न मानना, विधवाओंके शिरो- बन्द नहीं हो सकता। जो लोग इसरोके M जुल्मसे, मोहसे या अज्ञान मादिसे मुण्डनका आग्रह न करना, अस्पृश्य परधर्मी हो गये हैं, यदि उन्हें पीछे जातियोंकी सार्वजनिक अस्पृश्यता मिटा देना और उनमें शिक्षाका प्रचार करना, पश्चात्ताप हो, तो क्या अपने धर्मका द्वार उनके लिए सर्वदाको बन्द कर स्त्रीपुनर्विवाहके प्रश्नको एक ओर रखकर देना चाहिए ?" श्रीपाद शास्त्रीने पुरुष पुनर्विवाह त्याज्य ठहराना, स्त्रियों कहा कि "छुटपनके कपड़े जिस तरह को भी वेद पढ़ने का अधिकार देना, प्रत्येक बड़े होने पर नहीं पहने जा सकते ,उसी गाँवमें कमसे कम एक ऐसा सार्वजनिक मन्दिर बनवाना जिसमें सब लोगोको रही है तब प्राचीन कालके नियम इस तरह जब समाजकी दिनों दिन प्रगति हो दर्शन करने की आज्ञा हो, आदि बाते बहुत समय काममें नहीं पा सकते। इस दृष्टि विचारपूर्वक रक्खी गई थीं। केसरी और से ही पतित परावर्तन और अस्पृश्यता मराठाके सम्पादक श्रीयुक्त नरसिंह चिः मादि प्रश्नोंका निर्णय करना चाहिए।" न्तामणि केलकर भी उक्त परिषदमें उपस्थित थे। मापने कहा कि "धर्म त्रि. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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