Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 12
________________ जैनहितैर्षा [भाग १४ या विहार थे, वहाँ बिशप रहते थे और उनमें लोंसे लौटते थे तब एक एक लायब्रेरी बनकर बड़ी बड़ी लायबेरियाँ रहती थीं ! बड़े बड़े लौटते थे । वेद लिखे तो जा ही नहीं सकते थे, राजा भी उस समय लायब्रेरी रखते थे। पहले क्योंकि जो लिखता उसके लिए घोर नरक पहले लोग लायबेरियोंमें बैठ कर पढ़ते थे, निश्चित था ! प्रसिद्ध मुसलमान इतिहासज्ञ पीछे पुस्तकें घर ले जा कर पढ़नेकी भी व्यवस्था अलबेरुनी लिख गये हैं कि ईसवी सन् ९५० में कर दी गई थी। सबसे पहले काश्मीर देशमें वेद लिपिबद्ध हुए। __“यह तो हुई प्राचीन अन्धयर्गकी बात । वर्त- थे। इस समय वेदोंकी हस्तप्रतियाँ बहुत कम/ मान समयमें तो लायब्रेरियोंकी गिनती ही नहीं उपलब्ध होती हैं । मोक्षमूलरने जितनी प्रतियों है । सभी नगरोंमें बड़ी बड़ी पब्लिक लायबेरियाँ । परसे ऋग्वेदका संस्करण प्रकाशित किया था, हैं । यूनीवर्सिटियोंमें लायबेरियाँ हैं और राजमह उनमेंसे कोई भी १६ वीं शताब्दिसे पहलेका लोंमें भी । इनमें जो एक सबसे बड़ी लायब्रेरी है नहीं है। हम लोगोंने उनसे भी कई पुरानी प्रतियाँ उसका हाल आप सब लोगोंको अवश्य जान पाई हैं उनमें एक ईसवी सन १३४२ की लिखी लेना चाहिए। यह लायब्रेरी अमेरिकाके वाशिंग हुई है। शुरूसे अब तक वेद कण्ठस्थ ही चले टन नगरमें खुली है। उसमें एक करोड़ पुस्तकें आते हैं । यही हाल बौद्धोंका भी रहा है। रखनेकी व्यवस्था की गई है और आवश्यकता ईसवी सन् ४०० में चीनका प्रसिद्ध यात्री फाहिहोने पर उसमें और भी स्थान बढ़ाया जा सकता यान यहाँ पुस्तक संग्रह करनेके लिए आया है ! लायब्रेरीके अध्यक्ष कोई भी पुस्तक नहीं छोड़ते था । परन्तु उसे कहीं भी ग्रन्थ नहीं मिले । वह हैं; कोई भी पुस्तकका पता लगा कि वे उसका । एक तरहसे हताश हो गया था, किन्तु उससे संग्रह किये बिना नहीं रहते । इस समय यूरो एक आदमीने कहा-“ यहाँ वैसे पुस्तकें नहीं पमें लायबेरियन होनेके लिए एक कठिन परीक्षा मिलेंगी। बूढ़े बूढ़े भिक्षुकोंके पास जाओ और देनी पड़ती है-आलमारियोंमें पुस्तकें किस तरह उनके मुखसे ग्रन्थ सुन सुनकर लिख ले जाओ।" सजाना और किस तरह लायब्रेरीके सूचीपत्र फाहियानने आखिर ऐसा ही किया और वह बनाना इन सब बातोंको सिखानेवाली वहाँ एक बौद्धधर्मकी समस्त पुस्तकें लिख ले गया। जुदा साइन्स ही बन गई है। वहाँ केवल लाय- “वेद और धर्मग्रन्थोंके सम्बन्धमें यहाँ यही ब्रेरियनोंके ही उपकारके लिए अनेक मासिकपत्र हाल था, परन्तु अन्यान्य विषयोंके ग्रन्थ बराबर निकलते हैं और अनेक सोसायटियाँ हैं। लिखे जाते थे। लायबेरियाँ भी थीं। प्रायः प्रत्येक "अब अपने देशकी लायबेरियोंकी बात सुनिए। ब्राह्मण ब्राह्मणके यहाँ एक एक छोटी मोटी लायब्रेरी रहती जब हमारे ब्राह्मणगण वेदमंत्रोंको कण्ठ रखते थे थी। जिसके जितनी बड़ी लायब्रेरी होती थी, वह ', उतना ही बड़ा पण्डित समझा जाता था-क्यों तब-उस प्राचीन कालमें-लायबरियोंकी जरूरत कि “ ग्रन्थी भवति पण्डितः ।" नहीं थी । ब्राह्मण लोग अपने पाँच वर्षके ' बच्चेको घरसे ले जाकर गरुगहोंमें रख आते थे। ... "चौद्धोंके प्रत्येक विहार या मठमें लायब्रेरी उस समय वे वेदोंको मुखस्थ किया करते थे। रहती थी । जैनोंके उपाश्रयों और मन्दिरोंमें ९-१८-२७ या ३६ वर्ष केवल वेद कण्ठस्थ शास्त्रभाण्डार होते थे। राजाओंके यहाँ भी पुस्तकरना पड़ते थे । इस लिए जब ब्राह्मण गुरुकु. कालय रहते थे । मुसलमानोंकी विजयके समय Jain Education International www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only

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