Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 20
________________ २६८ जैनहितैषी । [भाग १४ अच्छा युक्तिवाद देखनेको न मिला होगा! . २-ब्राह्मणविधवाकी उदारता । बात यह है कि यदि हम स्त्रीपुरुषोंकी समानता नीलकटरा, देहलीके पंडित दीनानाथजी सिद्ध कर दें तो वैद्यजी हमारी उलटी सीधी सभी जैतली ( सारस्वत ) की विधवाने अपनी सारी बातोंको सच माननेके लिये तय्यार हैं, और संपत्ति, जो प्रायः एक लाख रुपयेकी मालियतअदि सिद्ध न कर सकें या करना न चाहें तो फिर की है, एक सनातनधर्म-कन्यापाठशाला, एक हमारी बातें चाहे कितनी भी अच्छी,. सत्यता- पुस्तकालय और एक प्याऊ स्थापित करनेके पूर्ण और शास्त्रसम्मत क्यों न हों परंतु वैद्यजी लिये लिख दी है । महामहोपाध्याय पं०. उन्हें बिलकुल झूठ और जाल समझेंगे ! है बांकेराय नवल गोस्वामी, लाला राधामोहन, कोई वीर महानुभाव जो वैद्यजीके हृदयका मि० ताराचंद वकील आदि कई सज्जन उसके यह काँटा निकाल देवे, उनकी विकलता दूर कर- ट्रस्टी नियत हुए हैं । हम उक्त विधवाबाईकी इस देवे और उन्हें लटकंतमें लटकनेसे बचा लेवे ? उदारता और समयोपयोगी दानशीलताकी. हमारी तो शक्तिसे यह काम बाहर मालूम होता हृदयसे सराहना करते हुए अपनी उन जैनविहै । हम यदि अनेक अवयवोंसे स्त्रीपुरुषों की धवाओंका ध्यान इस ओर आकर्षित करते हैं समानता सिद्ध भी कर देवें तो वैद्यजी यही जिन्हें रथयात्रा, मेले ठेले, मंदिरप्रतिष्ठा और कहेंगे कि हम सर्वथा समानता चाहते हैं यद्यपि उत्सवादिके सिवाय दूसरा कोई पुण्यकर्म ही उनके उपर्युक्त प्रतिज्ञावाक्यमें 'सर्वथा ' मालूम नहीं होता । उन्हें एक ब्राह्मणविधवाके शब्द नहीं है । इस पर हमारा यह कहना इस समयोपयोगी दानसे कुछ सबक सीखना । होगा कि यदि संपूर्ण अवयवोंकी सर्वथा समा- चाहिये और अपने समाजकी वर्तमान अवश्यनता पर ही कोई समानाधिकार निर्भर है और ताओंको मालूम करके उनके पूरा करनेका यत्न स्त्रीपुरुषोंके संपूर्ण अवयवोंमें सर्वथा समानता करना चाहिये । समयोपयोगी कार्यों में व्यय नहीं है तो फिर उनका कोई भी अधिकार किया हुआ धन ही अधिक फलदायक और समान न होना चाहिये । उन्हें खाने पीने, विशेष पुण्यजनक होता है। उठने बैठने, सोने जागने, रोने धोने, सोचने ३-सेठजीका वेश्यानृत्यसे प्रेम । विचारने, देखने सुनने, दुख सुखका अनुभव भारतवर्षीय दिगम्बर जैनमहासभाके सभापति, करने, जीने मरने और आत्मरक्षा आदिके जो सरकारसे रायबहादुर' 'सर' और 'नाइट' समान अधिकार मिले हुए हैं वे सब रद्द होने की उपाधियाँ प्राप्त, इन्दौरके धनकुवेर सेठ चाहिये । नहीं हालूम इस पर वैद्यजी क्या उत्तर हुकमचंदजी वेश्यानृत्यके बड़े ही प्रेमी मालूम देंगे। इस लिये हमसे उनका समाधान नहीं हो होते हैं । यद्यपि आपने अपने अनेक व्याख्या.. सकेगा। अस्तु । नोंमें, वेश्यानृत्यका जोरके साथ निषेध किया है ___ यहाँ किसीको यह कहनेका साहस न करना और पालीताणामें दि० जैन प्रान्तिक सभा बम्बचाहिये कि वैद्यजीने, न्यायशास्त्रमें गति न ईके सभापतिकी हैसियतसे ये शब्द कहे थे:होते हुए, व्यर्थ ही उसमें हाथ डालकर अपनी इस ( वेश्यानत्य ) के द्वारा हमारा धन ही नष्ट! और उसकी मिट्टी खराब की है, नहीं तो वैयजी नहीं होता, बल्कि हमारी संतान भी इससे नष्ट रुष्ट हो जायँगे और उनकी बातोंको भी बिल- होती है । सुकुमार संतानके हृदय पर जैसी शिक्षाका कुल झूठ समझने लगेंगे! प्रभाव डाला जाता है वह आगामी सदैवके लिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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