Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 24
________________ inranianusas.nibanahunchaana. - २७२ जैनहितैषी [भाग १४ नेमें डर किसका ? और शरम किसकी ? विना ८-अंत्यजोंके उद्धारसम्बंधमें नामके लेख-पत्र लिखनेवालोंको अब भी मेरी महात्मा गाँधीके विचार । यह शिक्षा है कि तुम इस आदतको छोड़ दो। जिन विचारोंकी, जिस भाषाकी जवाबदारी ___ अंत्यजों को, अस्पृश्य मानना पाप है। उठानेके लिये हम तय्यार नहीं हैं उन विचारोंको काठियावाड़की किसी प्रसिद्ध, धर्मपरायण बतलाने अथवा वैसी भाषा प्रयोग करनेका हमें और विदुषी बहनने, एक पत्रके द्वारा, · महात्मा अधिकार नहीं है।" गाँधीजीसे दो बातें पूछी थीं, जिनमेंसे एक - विना नामके लेखों तथा पत्रोंमें अक्सर भाषा बात अंत्यजोंके सम्बंधकी थी और उसका प्रश्न इस प्रकारसे किया गया थाकटुक हो जाती है और नम्रता जाती रहती है, ___ "मैं एक दूसरी जरूरी बात पूछती हूँ। यह इसलिये महात्मा गाँधीजी आगे सूचित करते हैं दुर्भागी हिन्दुस्तान उग्रभागी कब होगा, यह बात कि इस तरह पर विवेक छोड़कर लिखनेका हमें कभी अधिकार नहीं है। जिन्हें किसी विषय आप तो जानते होंगे पर क्या दूसरोंको भी बतलाओगे? बहुतसी कौमोंकी अपेक्षा आप पर टीका. टिप्पण करनेका विचार हो उन्हें अंत्यज कौमको अधिक उत्तेजन देते हो, इसका विवेक न छोड़कर हिम्मतके साथ अपना नाम विशेष रहस्य क्या है ? हिन्दुस्थानमें बहुतसी देते हुए उसे कार्यमें परिणत करना चाहिये। कौमें (जातियाँ) दुर्बल स्थितिमें हैं उनमेंसे . आशा है हमारी जैनसमाजके लेखक भी अंत्यजोंकी कौमके ऊपर आपकी अधिक लगन महात्माजीकी इस शिक्षाको ध्यानमें रक्खेंगे। ( तवज्जह ) है ऐसा मालूम होता है। मेरी यह ७-दुअन्नीका मूल्य । मानता ठीक नहीं होगी, क्योंकि आपने 'आत्महालमें 'अखिल भारतवर्षीय एकादश वैद्य वत्सर्वभूतेषु' के सिद्धान्तको मानकर सत्याग्रह सम्मेलन'का जो जल्सा इन्दोरमें हुआ था उसमें पकड़ा है।" एक दिन प्रयागमें विद्यापीठ महाविद्यालय खोल- महात्मा गाँधीजीने, अपने ३० मईके 'नवनेके लिये चंदेकी अपील की गई थी। इस अपी- जीवन में, उक्त बहनकी दोनों बातोंका उत्तर लका परिचय देते हुए सहयोगी वैद्य, अपने ४ देते हुए अंत्यज्ञोंके उद्धार विषयमें अपने विचार थे नम्बरकी संख्यामें लिखता है कि चंदेमें इस प्रकारसे प्रकट किये हैं:"पंजाबके एक साधुने एक दुअन्नी दी थी, जो . “अब मैं अंत्यजोंके विषयका उत्तर देता नीलाम की गई । अन्तमें वह दुअन्नी १०२५)रु. हूँ। हिन्दुस्तानके मंदभाग्यका प्रश्न इसमें समाया में बम्बईके डा० पोपट प्रभुरामने खरीद ली।" हुआ है । अंत्यजोंका प्रश्न करके यह बहन शंका जिस साधुकी एक दुअन्नीकी इतनी कदर की गई उठाती है कि क्या अंत्यजोंको अंत्यजतामेंसे और इतना मूल्य दिया गया वह कैसा प्रतिष्ठित, निकाल कर हम हिन्दुस्तानको उग्रभागी बना प्रभावशाली और लोकप्रिय होगा, इसे पाठक सकेंगे ? मैं समझता हूँ जरूर ऐसा परिणाम स्वयं समझ सकते हैं । परंतु खेद है सहयोमीने निकाला जा सकता है; क्यों कि जिस शक्तिके उसका नाम नहीं दिया और इस तरह अपने द्वारा हम एक महा पापसे मुक्ति प्राप्त करेंगे उसी पाठकोंको उसका नाम जाननेके लिये उत्कंठित शक्तिके द्वारा दूसरे पापोंमेंसे भी अपनेको निकाल . ही रक्खा । । तर सकेंगे। और मेरी यह दृढ मान्यता है कि जन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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