Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 29
________________ अङ्क ९] त्रुवल्लुव नायनार त्रुकुलर। . २७७ था; परन्तु अब उसने फिर दूसरी आज्ञा जारी त्रवल्लव नायनार करल। की है कि नहीं, जैनहितैषी भी क्यों जैन बना रहे ? उसको भी जैन बनाये रखनेमें लाभ नहीं है । जैनी भाइयोंको चाहिए कि इसे. भी अजैन (लेखक-स्वर्गीय बाबू दयाचन्दजी गोयलीय) समझें और इसके ग्राहक न बननेकी और न . (अंक ४-५ से आगे). पढ़नेकी प्रतिज्ञा कर लें! सभाको उसकी इस . ५-गृहस्थाश्रम। उदारता और गुणज्ञताके लिए अनेक धन्यवाद! ४१-गृहस्थसे ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ और सन्या१४ महात्मा तिलकका स्वर्गवास। सी तीनों अवस्थाओंके लिये सहायता मिलती है। पूनेके सुप्रसिद्ध देशभक्त महात्मा तिलकका ४२-अनाथों, दरिद्रों और असहाय मतक (?) ता० ३१ जुलाईकी रातको बम्बईमें स्वर्गवास , मनुष्योंके लिये गृहस्थ अवलम्ब है। हो गया । राजनीतिके क्षेत्रमें काम करनेवालोंमें ४३-पितरोंका श्राद्ध (?) करना, देवताओंका आज तक उनके समान सम्मान और प्रतिष्ठा किसीको भी प्राप्त नहीं हुई। उस दिन उनके यज्ञ करना अतिथियोंका सत्कार करना, सम्बंअन्तिम संस्कारके समय जनताकी जैसी भीड़ । धियोंकी सहायता करना और आत्म-रक्षा हुई थी वैसी आज तक किसी भी नेता. महात्मा करना ये पाँच गृहस्थके कर्तव्य हैं। और धर्माचार्यके लिए तो क्या किसी राजा ४४-उसका वंश कभी नहीं नाश होता जो महाराजाके लिए भी नहीं हुई थी! एक समा- धर्मानुकूल आजीविका प्राप्त करता ह और सुपा-- चारपत्रके कथनानुसार उस समय ५-६ लाख त्रोंको दान देकर भोजन करता है। मनुष्य उपस्थित थे ! वह दृश्य अपूर्व था । उससे ४५-जिस घरमें धर्म और प्रेमका बाहुल्य है पता लगता था कि इस समय देशमें देशप्रेमकी' अर्थात् जहाँ पति और पत्नीमें गाढ प्रेम है, वहीं महिमा कितनी बढ़ गई है। महात्मा तिलक घर सुखी है और उसका प्रत्येक कार्य उत्तम प्रतिभा, साहस, धैर्य, निर्भयता, कष्टसहिष्णुता, रीतिसे सिद्ध होता है। राजनीतिज्ञता और एकनिष्ठता आदि सभी गणोंमें ४६-जो मनुष्य गृहस्थाश्रमके धर्मका समीअद्वितीय थे । ज्योतिष और पुरातत्त्वके भी वे . चान रूपसे पालन करता है उसके लिये वानधुरन्धर पण्डित थे। उनके देहावसानसे देशकी प्रस्थ या संन्यासाश्रममें जानेकी क्या आवजो महती हानि हुई है वह जल्दी मिटनेवाली श्यकता है? नहीं । उनके कट्टरसे कट्टर विरोधियोंको भी ४७-जो मनुष्य गृहस्थाश्रममें शास्त्रानुकूल उनकी इस असमयमृत्युसे शोक हुआ है । सभीकी यह राय है कि देशका एक महान् रत्न धर्माचरण करता है वह वानप्रस्थोंसे भी बढ़कर है। लुप्त हो गया। देश कंगाल हो गया। महात्मा . ४८-जो मनुष्य गृहस्थाश्रममें रहता हुआ गाँधीके शब्दोंमें लोकमान्य तिलक मरकर भी इस बातका ध्यान रखता है कि तपस्वी लोग हमें जीनेका मंत्र सिखा गये हैं। साथही देशके निर्विघ्नतासे अपनी तपस्या कर रहे हैं, अर्थात् हृदयमें वे अमर हो गये हैं। * उन्हें कोई कष्ट नहीं है और जो स्वयं धर्मानुकूल जीवन व्यतीत करता है वह तपस्वियोंसे * पिछले चार नोट प्रकाशकके लिखे हुए है। बढ़कर है। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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