Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 31
________________ २७९ अङ्क ९] त्रुवल्लुव नायनार त्रुकुरल। ६३-विद्वानोंका कथन है कि सन्तान माता ७२-जिन मनुष्योंमें प्रेम नहीं है वे स्वार्थी पिताका धन है, कारण कि जो धन संतान हैं और अपने लिये जीते हैं, परंतु जिनमें प्रेम पैदा करती है और उससे जो सत्कार्य माता- है वे दूसरोंके लिये अपने प्राण तक न्योछावर पिताके लिये करती है उनका फल माता करनेको तैयार रहते हैं। पिताको पहुँचता है। , ७३-विद्वानोंका कथन है कि आत्माने इस ६४-बच्चोंके नन्हें नन्हें हाथोंसे स्पर्श कारण स्थूल शरीरको धारण किया है कि जिससे किया हुआ और इधर उधर फैलाया हुआ जीवधारियोंमें प्रेमका संचार हो। । भोजन अमृतसे भी बढ़कर स्वादिष्ट होता है। ७४-प्रेमसे जीवमात्रके प्रति मनमें दयाका ६५-बच्चोंके स्पर्श करनेसे शरीरको सुख भाव होता है और दयालुतासे मनुष्यकी इतनी मिलता है और उनकी तोतली बोलीके सुननेसे इज्जत होती है कि सब लोग उसको अपना मित्र कानोंको। कहते हैं। ६६-जिन्होंने अपने बच्चोंकी तोतली और ७५-प्रेमके शांतिमय जीवनसे मनुष्यको इस मीठी बोलीको नहीं सुना है केवल वे ही लोक और परलोकमें दोनों जगह सुख मिलता है। ' लोग यह कहा करते हैं कि वीणा और बाँसु- दसरा सगे। . रीका स्वर मधुर होता है। • ६७-पुत्रके प्रति पिताका यही कर्तव्य है । ३९-राजाके सगुण ।* कि वह उसको विद्वानोंकी सभामें उच्च आसन ____३८१-जिस राजाके पास सैन्य, मनुष्य, पर बैठनेके योग्य बना दे। द्रव्य, मंत्री और दुर्ग ( किला) ये छहों चीजें ६८-पुत्रको पितासे अधिक उन्नति करते हैं वह राजाओंमें सिंहके समान है। हुए देखकर सम्पूर्ण संसारको आनंद होता है। ३८२-साहस, उदारता, बुद्धिमत्ता और ६९-माताको पुत्रकी उत्पत्तिसे बडा आनन्द उत्साह ये चार गुण ऐसे हैं कि राजामें सदैव ये जाने चाहि होता है, परंतु उसका आनन्द उस समय और भी अधिक बढ़ जाता है, जब वह संसारमें ३८३-राजामें निरन्तर कार्यतत्परता, विद्या उसके गुणों और विद्याकी प्रशंसा सनता है। और हढता ये तीन गुण भी रहने चाहिये। ७०-पुत्रसे पिताको क्या लाभ है ? अर्थात . ३८४-यदि राजा धर्मसे च्युत नहीं होता है, प्रजाको पापकर्म करनेसे रोकता है और पुत्रको पिताके लिये क्या करना उचित है ? . अपनेमें साहस रखता है तो उसका गौरव सुरइसका उत्तर यह है कि पुत्रको ऐसा सुशील और । सदाचारी होना चाहिए कि लोग उसे देखकर क्षित रहता है। स्वतः यह कहने लगे कि तपस्या करनेसे उक्त . ३८५-राजा वह है जो द्रव्योपार्जन करता है, उसका संचय करता है, उसकी रक्षा करता मनुष्यको ऐसे पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई है। . है और फिर उसे धर्मकार्यों में व्यय करता है। ८-प्रेम। ___३८६-जिस राज्यमें प्रजा आसानीसे राजा७१-क्या कोई वस्तु ऐसी है जो प्रेमको के पास पहुँच सकती है और जहाँ पर राजा प्रकट हानेस रोक सके ? प्रेमीकी आँखाक छोटे इनके पहलेके ३०५ पदोंके अनवादकी कापी छोटे आँसू ही उसके प्रेमको प्रकट कर देते हैं। खो गई है। . . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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