Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ 280 ..जैनहितैषी- [भाग 14 कठोर वचनोंका प्रयोग नहीं करता उस राज्य- ३९५-जिस प्रकार भिक्षुक धनिकोंके सामने की सम्पूर्ण संसार प्रशंसा करता है। उनके नीचे खड़े रहते हैं उसी प्रकार मूर्खजन __ ३८७-जो राजा मीठी वाणीसे उदारताके ज्ञानी पुरुषोंसे नीचे खड़े रहते हैं। . साथ प्रजाकी सहायता करता है और अपने बल ३९६-रेतीले मैदानको जितना अधिक पराक्रमसे उसकी रक्षा करता है, उसकी सेवा गहरा खोदते हैं पानीके सोते उतने ही अधिक करनेके लिए सम्पूर्ण जगत् तैयार रहता है। निकल आते हैं, उसी प्रकार जितनी अधिक . / ३८८-जो न्यायसे शासन करता है और तुम विद्या प्राप्त करोगे उतने ही अधिक ज्ञानके प्रजाके दुःखोंको दूर करके उनकी सहायता सोते तुम्हारे अन्दरसे निकलेंगे। करता है उसे प्रजा उसके कामोंके करण देव ३९७-जब विद्यावानोंके लिए प्रत्येक देश ताके समान समझती है यद्यपि वह जन्मसे स्वदेशके समान और प्रत्येक गृह स्वगृहके समान मनुष्य होता है। ३८९-योग्य और उत्तम राजा वह है जो जो हो जाता है तब समझमें नहीं आता कि बहुतसे हा ऐसे कड़वे बचनोंको भी समझकर सहन कर मनु मनुष्य बिना कुछ सीखे अपना जीवन कैसे व्यर्थ लेता है जिन्हें कान सहन नहीं कर सकते। खा दत है। (क्रमशः) ऐसे राजाकी छत्रछायामें सम्पूर्ण संसार सुखचै.. नसे रहता है, अर्थात् वह सम्पूर्ण जगत पर विनामूल्य। शासन करता है। 1 जो लोग इस सूचनाके निकलनेके बादसे. ३९०-दान, दया, उत्तम शासन और प्रजा- छह महीनेके लिये, इसी अंकसे, जैनहितैषीके के आनन्दकी चिन्ता ये चार बातें राजाके ग्राहक होंगे और 6 महीनेके मूल्यकी बाबत प्रकाशको प्रकट करती हैं। 11) रु. मनीआर्डर द्वारा भेज देवेंगे, अथवा पूरे सालके लिये ग्राहक होंगे और पिछले ४०-विद्या। अंकोंको भेजे जानेकी स्वीकारता देकर साल ३९१-इस प्रकार विद्या प्राप्त करो कि जिससे भरके लिये 2) रुपये मूल्यका मनीआर्डर तुम्हें पूर्ण और निदोष ज्ञानकी प्राप्ति हो और रवाना करेंगे ऐसे सब नवीन ग्राहकोंको 'विधवा फिर ठीक प्राप्य ज्ञानके अनुकूल आचरण करो। कर्तव्य' नामकी एक डेढसौ पृष्ठोंसे ऊपरकी ३९२-जिस प्रकार दोनों आँखें मनुष्यको पुस्तक विना मूल्य भेट की जायगी।। मार्ग प्रदर्शित करती हैं उसी प्रकार संख्याज्ञान __2 जिनभाईयोंको अपने तथा अपने इष्टमित्रादि और (गणित ) शब्दज्ञान (व्याकरण) ये दो कोंके लिये 'मेरी भावना' की दो चार कापियोंकी विद्यायें इस संसारके समस्त प्राणियोंके लिए जरूरत हो वे डाक खर्चके लिये आधा आनेका मार्गप्रदर्शक हैं। टिकट भेजकर हमसे विनामूल्य मँगा सकते हैं। ३९३-कहा है कि जिन मनुष्योंने विद्या संपादक / सरसावा (सहारनपूर ) लाभ कर लिया है, वे ही वास्तवमें नेत्रधारी हैं। मूर्खजन नेत्रहीन अर्थात् हियेके अन्धे हैं / चर्चा-समाधान / ____३९४-ज्ञानवान् पुरुषोंका यह गुण है कि वे यह सुप्रसिद्ध ग्रन्थ हाल ही छपकर तैयार बड़ी उत्सुकतासे उस समयकी प्रतीक्षा करते हैं हुआ है। मूल्य 2 // 3) जब उन्हें फिरसे विद्वानोंकी संगतिका आनन्द - जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय प्राप्त हो। हीराबाग, बम्बई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32