Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 27
________________ . अङ्क ९] विविध-प्रसङ्ग। ११-सेठीजी जाति और बीसा हुमड़ोंमें भी परस्पर एक दो सम्बन्ध च्युत किये गये। हो गये हैं और वे थोड़ेसे ही विरोध आदिके. ___ बाद एक तरहसे जायज समझ लिये गये हैं। गत अंकमें यह समाचार प्रकाशित किया खण्डेलवाल पंचायती अपने रीति-रवाजोंको जा चुका है कि बम्बईमें खंडेलवालजातीय है और जातिनियमोंको अपनी इच्छानुसार जारी श्रीयुक्त पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. ने . अपनी मँझली कन्याका विवाह एक हूमड़ नेका किसी दूसरेको अधिकार नहीं हो सकता; रखमेके लिए स्वतन्त्र है । उसमें हस्तक्षेप कर. जातीय जैन युवकके साथ कर दिया है । जहाँ , तक हम जानते हैं जैनधर्म इस प्रकारके विवा । फिर भी उसे ऐसे मामलोंमें अब विशेष सोचहाँका निषेध नहीं करता । जब जैन न समझस काम लेना चाहिए । समय बदल अनुसार चक्रवर्ती जैन राजा म्लेच्छ देशकी . रहा है, • लोगोंके दृष्टिकोण बदल गये हैं और सामाजिक अत्याचारोंसे लोग इतने पीडित कन्याओं तकसे विवाह करते थे, और द्विज . न हो रहे हैं कि यदि उनकी न्याय्य आकांजातियोंमें-ब्राह्नण क्षत्रिय और वैश्यवर्गों में क्षाओंके प्रति सहानुभूति प्रकट न की जायगी परस्पर विवाहसम्बन्ध होनेके सैकड़ों उदाहरण जैनकथासाहित्यमें भरे हुए हैं, तब यह एक ही तो वह समय दूर नहीं है जब पंचायति योंकी अवाधित सत्ताके नँएको लोग अपने वैश्यवर्णकी और एक ही दिगम्बर जैनधर्मको माननेवाली दो जातियोंका सम्बन्ध तो किसी कन्धोंसे उतार कर फेंक देंगे और उससे जो थोड़ा बहुत लाभ होता था उससे भी वंचित हो प्रकार भी ऐसा नहीं हो सकता कि इसका विरोध किया जाय । परन्तु न जाने क्या सोच जायँगे । हमारी छोटीसी समझमें यह ढंग कर बम्बईकी खण्डेलवाल जैनपंचायतने सेठी अच्छा नहीं है । इनसे स्वेच्छाचार घटेगा नहीं ' जैसी कि आशा की जाती है, उलटा बढ़ेगा। जीको जातिच्युत करनेकी आज्ञा जारी कर दी है ! इस आज्ञाको सुनकर बड़ा भारी आश्चर्य १२-एक कदम और आगे। इस कारण हुआ कि यहाँकी पंचायतके अग्रणी- सत्यवादीके भूतपूर्व सम्पादक पं० उदयप्रधाननेता-पं० धन्नालालजी काशलीवाल हैं और लालजी काशलीवाल भी खण्डेलवाल जातिके हैं। वे जैनधर्मके धुरन्धर पण्डित हैं । वे उन उनकी उमर इस समय लगभग ३६ वर्षकी है। लोगोंमेंसे हैं जो जैनशास्त्रोंको अक्षर अक्षर कई वर्षसे वे प्रयत्न कर रहे थे कि किसी खण्डेमानते हैं। हम नहीं समझते कि उन्होंने लवाल जातिकी कन्याके साथ शादी कर लेवें । इस जैनधर्मसे सर्वथा अनुकूल विवाहको इस कार्य के लिए उन्होंने ४-५ हजार रुपये तकक्यों अवैध समझा और उसका विरोध कर- का प्रबन्ध कर लिया था । वे अपने एक धना नेकी क्यों आवश्यकता समझी। मित्रके साथ नागोर आदि प्रान्तोंमें कन्याकी इस बम्बई पंचायतसे तो शोलापुरकी हमड़ शोधमें घूमे भी; परन्तु जब उनका कार्य सिद्ध पंचायत ही विचारशील निकली। सनते हैं, नहीं हुआ और वे इस ओरसे निराश हो गयेउसने अभी तक इस विवाहके विरुद्ध कोई उन्हें अपनी चरित्ररक्षाका और कोई उपाय भी प्रयत्न नहीं किया है और न वह करना नहीं सूझ पड़ा तब उन्होंने एक सच्चरित्र बालही चाहती है । इसके पहले शोलापुरमें दसा विधवाको जो जातिकी ब्राह्मणी है, बुला लिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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