Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 11
________________ अङ्क ९] लायब्रेरी। गढ़ते थे, पत्थरके मकान तैयार करते थे, दूर देशोंकी पुस्तकें संग्रह करते थे । मिसरकी पुस्तकें दूर तक वाणिज्य करते थे और लिखना पढ़ना भी वे संग्रह करते थे और हिब्रू लोगोंकी भी भी जानते थे। इन्हें मार कर आकाद लोग वहाँ- करते थे । वे बड़े बड़े पण्डितोंको तलाश करके के राजा हुए। सुमेरोंकी बहुत कुछ सभ्यता उन्हें लायब्रेरीके अध्यक्ष बनाते थे । किसीआकादोंने ले ली थी, इस लिए उन्हें सुमेरोंकी किसीका मत है कि वहाँ ७ लाख पुस्तकें थी! भाषा सीखने के लिए कोषकी आवश्यकता हुई। बहुतोंका खयाल है कि जब खलीफा उमरने आखिर उन्होंने सुमेर और आकाद दोनों ही अलेकजेण्ड्रिया पर अधिकार किया, तभी उक्त भाषाओंका कोश बनाया । वह कोष भी उक्त लायब्रेरी जला दी गई थी और बहुतोंका कथन लायब्रेरीमें प्राप्त हुआ है । एक महाकाव्य भी इन है कि खलीफाके बहुत पहले अनेक गड़बड़ोंके सब लायबेरियोंमें मिला है । उसका नाम है- कारण वह नष्ट हो गई थी। एक उदाहरण लीजिए। 'ईस्तर और ईसदुबाल' । इस काव्यका अँग- इस लायब्रेरीके दो भाग थे। एक समुद्रके बहुत रेजी अनुवाद हो गया है और उसे मैंने पढ़ा निकट था और वही बड़ा था । जूलियस सीजरने है । बड़े ही आश्चर्यकी बात है कि जितने जब अलेकजेण्ड्रियाकी नौकाओंके बेड़ेमें आग प्राचीन महाकाव्य हैं वे सभी बहुत लम्बे हैं- लगा दी, तब उसी आगसे उक्त बड़ा भाग जल रामायण, महाभारत, इलियड, ओडेसी आदि गया। सीजरके बाद उसका परम मित्र एण्टोनी सभी; परन्तु ईस्तर और ईसदुबाल इस समयके इस हानिको पूर्ण करनेके लिए बहुत ही चिन्तित महाकाव्योंके-रघुवंश, मेघनादवध आदिके- हुआ। उसने यह किया कि पार्गामस : समान हैं और सर्गबद्ध है । इसमें भी बीज- स्थानमें जो एक विशाल लायब्ररी थी उसीको बिन्दु-पताका सब हैं और वर्णन भी बहुत लाकर क्लिओपेट्रा (मिसरकी रानी) को दान कर सुन्दर है । इसमें स्वर्ग, नरक, समुद्र, पर्वत, दी। तव क्लिओपेट्राने इस बड़ी लायब्रेरीमें युद्धविग्रह, किले आदि सभी बातोंका वर्णन पार्गामसकी पुस्तकें रख दीं। है । एक अद्भुत वस्तु है। "रोममें भी बड़ी बड़ी लायबेरियाँ थीं। ये. “यवन या ग्रीस देशमें अनेक बड़ी बड़ी सब लायबेरियाँ सर्वसाधारणके हाथमें रहती लायबेरियाँ थीं । बादशाह सिकन्दरके गुरु थीं, सब ही लोग उनमें जाकर पढ़ सकते अरस्तू (अरिस्टाइल ) की एक विशाल लायब्ररी थे। इस प्रकारकी पब्लिक लायब्रेरी या सर्व थी। वे उसे अपने एक छात्रको दे गये थे। साधारणका पाठागार सबसे पहले आगस्टसने एथेन्समें यूक्लिडकी एक लायब्रेरी थी । किन्तु खोला था। ईस्वी सन् ४ में रोमनगरमें इस सिकन्दरिया (अलेकण्ड्रिया ) की लायब्रेरी प्रकारकी २९ पब्लिक लायबेरियाँ थीं। इनके पृथिवीकी सभी लायबेरियोंसे बढ़ गई थी। सिवाय प्रायजसभी बड़े बड़े नगरोंमें लायबेरियाँ महावीर सिकन्दरके सेनापति टालेमीने मिसर थीं। जब रोमकी राजधानी कस्तुस्तुनियामें चली देश विजय किया था । इसी टालेमीने सिक- गई, तब वहाँ भी खूब बड़ी बड़ी लायबेरियाँ न्दरियाकी लायब्रेरी स्थापित की थी। उस समय बनाई गई । वहाँकी एक लायब्रेरीमें एक टेपिरास नामक एक झाड़की छालपर लिखना लाखसे भी आधिक पुस्तकें थीं । रोम साम्राआरंभ हो गया था । वर्णमालाका भी प्रचार ज्यके नष्ट होने पर पोपोंने भी बड़ी बड़ी हो गया था । टालेमी और उसके अनुचर सभी लायबेरियाँ बनाई थीं । जहाँ बड़े बड़े मठ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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