Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 14
________________ २६२ • साहूजीने जब उक्त देश पर अधिकार जमाया और तंजौरको राजधानी बनाया तब इस लायबेरी की खूब उन्नति हुई । इसमें १८००० से अधिक ग्रन्थ हैं। जैनहितैषी - 66 लगभग ३०० वर्ष पहले एक बड़े भारी संन्यासी गोदावरी तीरसे काशीवास करने के लिए आये थे और उन्होंने वरुणाके तीर पर एक लायब्रेरी स्थापित की थी । उसमें चुने हुए लगभग ३००० ग्रन्थ थे । उसकी एक सूची इस समय भी उपलब्ध है । संन्यासीका नाम था—सर्वविद्यानिधान कवीन्द्राचार्य सरस्वती । 66 मुसलमान बादशाहोंमें अनेक बादशाह लायब्रेरी रखते थे । उनके अमीर उमरावों की भी लायब्रेरियाँ थीं । वे केवल अरबी और फारसीके ही नहीं, भारतीय ग्रन्थ भी संग्रह करके रखते थे । मुसलमानों को लायब्रेरी में बैठकर पुस्तकें पढ़नेका बड़ा शौक था । हुमायूँने लायब्रेरी के जीने से गिरकर ही प्राणत्याग किया था । " अँगरेजी शिक्षा के प्रभाव से इस समय तो सर्वत्र ही लायब्रेरियाँ खुल रही हैं । बंगालमें सबसे पुरानी लायब्रेरी रायल एशियाटिक सोसाइटीकी है। लार्ड वेल्सलीने फोर्ट विलियम कालेमें बड़े ठाठसे एक लायब्रेरी खोली थी । पीछेसे इस लायब्रेरीकी सब पुस्तकें एशियाटिक सोसाइटीको दे दी गई । ” Jain Education International दिन कब प्राचीन ग्रन्थों का संग्रह और उनकी रक्षा। [ भाग १४ 吸 ( लेखक -श्रीयुत नाथूराम प्रेमी । ) धर्म धर्म चिल्लाया करते हैं—यह बात मालूम नहीं हमारे जैनी भाइयोंको-जो रात सूझेगी कि धर्मकी रक्षा और उसके स्वरूपज्ञानके साधनभूत ग्रन्थोंकी रक्षा करने की भी जरूरत है । लोग थोड़ा बहुत प्रयत्न सभी प्रकारकी संस्थाओंके लिए कर रहे हैं, पर इस सबसे मुख्य कार्यकी ओर किसीका भी ध्यान नहीं जाता है कि देशके किसी मुख्यस्थान में एक विशाल सरस्वती - मन्दिर स्थापित किया जाय और उसमें जितने ग्रन्थ मिल सकें, उन सबका एक बड़ा भारी संग्रह किया जाय । For Personal & Private Use Only यह कोई भी नहीं सोचता है कि अन्य संस्थायें तो अभी नहीं दस पाँच वर्ष पीछे भी खोली जायेंगी तो हर्ज नहीं; पर इस संस्थाकी तो सबसे पहले एक दिनका भी विलम्ब किये बिना — जरूरत है । जितने दिन जा रहे हैं, उतने ही ग्रन्थ नष्ट हो रहे हैं और उनके बचनेकी संभावना नष्ट हो रही है। यदि जान-बूझकर हमारे इस प्रमादसे जैनसाहित्यका एक भी पत्रएक भी वाक्य- नष्ट होता है जो फिर किसी तरह भी प्राप्त नहीं हो सकता है, तो हम एक बड़ा भारी अपराध कर रहे हैं— जैनधर्मको विकलाङ्ग करनेका पाप सिरपर लाद रहे हैं । और यह बिलकुल स्पष्ट है कि हमारी इस लापरवाहीसे प्रतिदिन और प्रतिक्षण जगह जगह अनेक अनमोल और दुर्लभ ग्रन्थ किसी न किसी तरह से हो रहे हैं । कहीं वे चूहे और दीमकों का भक्ष्य बन रहे हैं, कहीं लोगोंकी अज्ञानतासे वे www.jainelibrary.org

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