Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 3
________________ हितं मनोहारि च दुर्लभ वचः । SANARDO INE तेरहवाँ भाग। अंक ५-६ जैनहितैषी। वैशाख, ज्येष्ठ,२४४३. । मई जून, १९१७. न हो पक्षपाती बतावे सुमार्ग, डरे ना किसीसे कहे सत्यवाणी। बने है विनोदी भले आशयोंसे, सभी जैनियोंका हितैषी हितैषी॥ PLANESH सुधारका मूलमंत्र। भला आदमी चोर और डकैत कैसे बन जाता है ? किस प्रकार एक असदाचारी सदाचारी और (ले०,श्रीयुत बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तार।) सदाचारी असदाचारी हो जाता है ? कल जो पाठकगण, क्या आपने कभी विचार किया भंगी या चमार था, वह आज ईसाई बनकर या "" है कि, एक मनुष्य जो अभी दूसरेके प्राण फौजमें भरती होकर बाह्मण और क्षत्रियों जैसी लेनेके लिए तैयार था शान्त क्यों हो गया ? एक बातें क्यों करने लगता है ? एक मनुष्य, जिसे बालक रोते रोते हँसने क्यों लगा ? एक आदमी अपने प्राणोंका बहुत मोह था, सहर्ष प्राण देनेके जो अभी हँसी खुशीकी बातें कर रहा था, शोकमें लिए क्योंकर तैयार हो जाता है ? कौन हमारी मन क्यों हो गया ? सभाके सब मनुष्य बैठे शान्तिको भंग कर देता है ? कौन हमारे हृदबिठाये एकदम खिलखिलाकर क्यों हँस पड़े ? योंमें प्रेम तथा भयका संचार कर देता है ? कल जो कायर और डरपोक बने हुए थे, वे और कौन किसी शान्तिमय राष्ट्रमें विप्लव' खड़ा आज वीर क्योंकर बन गये ? मर्खता और अस. कर देता है ? उत्तर इन सबका एक है और वह भ्यताकी मूर्तियाँ विज्ञान और सभ्यताकी मूर्ति- है-साहित्यशक्तिका प्रभाव । जिस समय योंमें कैसे परिणत हो गई ? जिस कार्यसे कल जैसे जैसे साहित्यका प्राबल्य हमारे सामने होता हमें घृणा थी आज उसीको हम प्रेमके साथ है, उस समय हमारा परिणमन उसी प्रकारका क्यों कर रहे हैं ! आनंद और सुखके देनेवाले हो जाता है । साहित्यसे अभिप्राय यहाँ किसी पदार्थ भी कैसे किसीको दुःखदायक और अरुचि- भाषाविशेषसे नहीं है और न केवल भाषाका कर हो जाते हैं ? आपसमें वैरविरोध क्योंकर नाम ही साहित्य हो सकता है । बल्कि भाषा भी पैदा होता और बढ़ जाता है ? एक अच्छे कुलका एक प्रकारका साहित्य है अथवा साहित्यके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 140