Book Title: Jain Hitbodh
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 3
________________ B श्री परोपकाराय सतां विभूतयः जीन दिनोध. नतिक विषयोसें भरपूर ८७१-७ જ શાંત મૂર્તિ મુનિરાન થી વૃદ્ધિ ચંદ્રવે છે Mi शिष्याणु मुनि करविजयजी विरचित ___वधर्मी भाइओ व्हेनोको पढ़ने के लीये श्री सुरत निवासी झवेरी देवबंद लालभाईकी लडकी बहेन वीजकारबाइ तरफसे भेट - हिंदी गिरामे भाषांतर कराके छपाके प्रसिद्ध कर्ता Ei. itiata Mirrr . RA .. Chh श्री जैन श्रेयस्कर मंडल म्हेसाणा अमदावाद श्री, सत्यविजय प्रीटींग प्रेस-पांचकुवा नवा दरवाजा संवत् १९६४ सने १९०८ वीर संवत् २४३४

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