Book Title: Jain Dharma Darshan Part 1
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 39
________________ आर्तध्यान से मरकर चण्डकौशिक सर्प हुआ। अपने नजदीक प्रभु को ध्यान में देखकर सर्प क्रोधातुर हआ, प्रभु का विनाश करने के लिए सूर्य के सामने दृष्टि कर उन पर फैंकी, तथापि भगवान वैसी ही स्थिति में खडे रहे, इससे अत्यंत गुस्सा होकर भगवन्त को काटा, दुध के समान लोही निकलने लगा भगवन्त ने फरमाया - बुज्झ बुज्झ चण्डकोशिक! चेत-चेत! चण्डकौशिक! ये वचन सुनकर सर्प को जातिस्मरण ज्ञान हुआ, अपना पूर्व भव जाना तब परमात्मा को तीन प्रदक्षिणा कर बोला-अहो! करुणा समुद्र भगवन ने मुझे दुर्गति से उद्धत किया, इत्यादि चिन्तन कर वैराग्य वश अनशन कर एक पक्ष तक बिल में मुख रखकर शान्त पड़ा रहा, तब घी बेचने वाले उस पर घी चढ़ा जाते उसकी गंध से असंख्य चींटियां आकर उसका शरीर खाने लगी, अत्यंत पीड़ा सहन करता हुआ प्रभु दृष्टिरूप सुधा वृष्टि से भीजा हुआ समता भाव से मरकर आठवें देवलोक को प्राप्त हुआ-यह तीर्थंकर देव का प्रभाव है। पूर्वजन्म के वैरी नागकुमार देव का नौका द्वारा जलोपसर्ग सुरभीपुर में राजगृह जाते समय मार्ग में आई हुई गंगा नदी को पार करने के लिए भगवान नाव में बैठे, उसी नाव में दसरे भी कई लोग बैठे। नाविक ने नाव खेना आरंभ किया। जब वह ठीक गहरे जल के पास पहुंची, तब अचानक पातालवासी सुदंष्ट् नामक नागकुमार देव ने ज्ञान से जाना कि अहो! जब ये महावीर त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में थे और मैं सिंह के भव में था, तब इन्होंने मुंह से चीरकर मुझे जान से मार दिया था। इस से उसकी वैरवृत्ति जाग उठी। वह प्रतिशोध लेने के लिये दौड़ आया और अपनी दिव्य शक्ति से भयंकर तूफान उपस्थिति कर दिया। शुरू में उसने भयंकर वायु को फैलाया, जिससे गंगा के पानी में उभार आया। नाव इधर-उधर डगमगाती हुई उछलने लगी। मस्तूल टूट गया। सभी को अपने सिर पर नाचती हई मौत दिखाई दी। घबराहट बढ़ गई, हाहाकार मच गया। बचने के लिये सभी इष्ट देव का स्मरण करने लगे। ऐसे अवसर पर भगवान तो निश्चल भाव से ध्यान में ही पूर्ण मग्न थे। इस उत्पात की जानकारी कम्बल-शम्बल नामक नागदेवों को ज्ञान द्वारा होने पर वे तत्काल आये और उन्होंने सृदंष्ट्र को भगा दिया। तूफान शान्त हो गया और नाव सकुशल किनारे पर आ पहुंची। “इस महान् आत्मा के पुण्य प्रभाव से ही हम सब की रक्षा हुई है।" ऐसा मानकर सभी प्रवासियों ने भगवान को भावपूर्ण वंदना की और हार्दिक आभार माना। ध्यान से चलित करने के लिए संगमदेव द्वारा किये हुए दारूण बीस उपसर्ग एक बार देवराज इन्द्र ने देवी-देवताओं को संबोधित कर कहा - हे देवों! श्रमण भगवान महावीर तीन लोक में महावीर हैं। प्रभु महावीर को कोई भी देव अथवा दानव ध्यान से किंञ्चित् भी विचलित नहीं कर सकता। उस सौधर्म कल्प सभा में संगम नाम का एक सामानिक देवता था। वह अभव्य था। उसने कहा - "देवराज इन्द्र रागवश ऐसा कथन कर रहे हैं। ऐसा कौन मनुष्य है जिसे देवता विचलित न कर सके। मैं उसे आज ही विचलित कर दं।'' इन्द्र ने सोचा- मैं अगर रोषंगा तो उसका अर्थ होगा, प्रभु महावीर दूसरों के सहारे तपस्या कर रहे हैं। इन्द्र मौन रहा। संगम भगवान महावीर के पास आया। संगम ने उसी रात्रि में प्रभु महावीर को बीस मारणांतिक उपसर्ग दिये। 233 PARAMPivateerrersonfatusetonly 6-08 0 0 90...00 6666666 6 666666666660 mammintemanohar Manusertones wjarmendrary.org

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