Book Title: Jain Dharma Darshan Part 1
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ सप्त व्यसन व्यसन की परिभाषा व्यसन शब्द संस्कृत भाषा का है जिसका तात्पर्य है कष्ट । यहां हेतु में परिणाम का उपचार किया गया है। जिन प्रवृत्तियों का परिणाम कष्टकर हो, उन प्रवृत्तियों को व्यसन कहा गया है। व्यसन एक ऐसी आदत है जिसके बिना व्यक्ति रह नहीं सकता। व्यसनों की प्रवृत्ति अचानक नहीं होती। पहले व्यक्ति आकर्षण से करता है फिर उसे करने का मन होता है। एक ही कार्य को अनेक बार दोहराने पर वह व्यसन बन जाता है। अर्थ आदतों के कारण मनुष्य का पतन होता है, सदाचार एवं धर्म से विमुख बनता है, जिनके कारण मनुष्य का विश्वास नष्ट होता है, जो सज्जनों के लिए त्याग करने योग्य है, और जिन दुराचारों से मनुष्य जन्म बिगड़ कर नरकादि दुर्गति का पात्र बनता है, उन कुटेवों को व्यसन कहते है। मानव में ज्यों-ज्यों व्यसनों की अभिवृद्धि होती है, त्यों-त्यों उसमें सात्विकता नष्ट होने लगती है। नटी में तेज बाढ आने से उसकी तेज धारा से किनारे नष्ट हो जाते है. वैसे ही व्यसन जीवन के तटों को काट देते हैं। व्यसनी व्यक्तियों का जीवन नीरस हो जाता है, पारिवारिक जीवन संघर्षमय हो जाता है और सामाजिक जीवन में उसकी प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती है। धूतं च मासं च सुरा च वेश्या पापर्द्धि चौयं परदार सेवा; एतानि सप्तव्यसनानिलोके घोरातिघोर नरकं नयन्ति।। अर्थात जुआ, मांस, शराब, वेश्यागमन, चोरी, परस्त्री गमन एवं शिकार खेलना आदि व्यसनों से ग्रसित व्यक्ति नरक का पात्र होता है। प्रत्येक व्यक्ति को इन सात व्यसनों का त्याग अवश्य करना चाहिए, इससे जीवन निर्मल और पवित्र बनता है, जीवन में सर्वांगीण विकास की संभावना बनती है तथा व्यक्ति अनेक खतरों से बच जाता है। 1. जुआ शर्त लगाकर जो खेल खेला जाता है उसे जआ कहते है। बिना परिश्रम के विराट सम्पत्ति प्राप्त करने की तीव्र इच्छा ने जुआ को जन्म दिया। जुआ एक ऐसा आकर्षण है जो भूत की तरह मानव के सत्त्व को चूस लेता है। जिसको यह लत लग जाती है वह मृग-मरीचिका की तरह धन-प्राप्ति की अभिलाषा से अधिक से अधिक बाजी पर लगाता चला जाता है और जब धन नष्ट हो जाता है तो वह चिंता के सागर में डुबकियाँ लगाने लगता है। ___एक आचार्य ने ठीक ही कहा है जहां पर आग की ज्वालाएं धधक रही हों वहां पर पेड़-पौधे सुरक्षित नहीं रह सकते, वैसे ही जिसके अन्तर्मानस में जुए की प्रवृत्ति पनप रही हो, उसके पास लक्ष्मी रह नहीं सकती। एक पाश्चात्य चिन्तक ने भी लिखा है - जुआ लोभ का बच्चा है पर फिजूलखर्ची का माता-पिता है। ___ अतीतकाल में जुआ चौपड, पासा या शतरंज के रूप में खेला जाता था। महाभारतकाल में चौपड का अधिक प्रचलन था तो मुगलकाल में शतरंज का। अंग्रेजी शासनकाल में ताश के रूप में और उसके पश्चात सट्टा, लाटरी आदि विविध रूपों में जुए का प्रचलन प्रारंभ हुआ। रेस आदि का व्यसन भी जुआ ही है। इन सब के दुष्परिणामों से आप परिचित ही है। जूआ ताहा 744 For Private Personal use only Jan Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118