Book Title: Jain Dharma Darshan Part 1
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 82
________________ 3. मद्यपान (शराब) जितने भी पेय पदार्थ जिनमें मादकता है, विवेक-बुद्धि को नष्ट करने वाले हैं या विवेक-बुद्धि पर पर्दा डाल देते हैं वे सभी 'मद्य' के अन्तर्गत आ जाते हैं। मदिरा एक प्रकार से नशा लाती है। इसलिए भाँग, गाँजा, चरस, अफीम, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू, विस्की, ब्रांडी, शेम्पेइन, बियर देशी और विदेशी मद्य हैं, वे सभी मदिरापान में ही आते मदिरापान ऐसा तीक्ष्ण तीर है कि जिस किसी को लग जाता है उसका वह सर्वस्व नष्ट कर देता है। मदिरा की एक-एक बूंद जहर की बूंद के सदृश्य है। मानव प्रारंभ में चिंता को कम करने के लिए मदिरापान करता है पर धीरे-धीरे वह स्वयं ही समाप्त हो जाता है। शराब का शौक बिजली का शॉक है। जिसे तन से, धन से और जीवन के आनंद से बर्बाद होना हो उसके लिए मदिरा की एक बोतल ही पर्याप्त है। मदिरा की प्रथम घूंट मानव को मूर्ख बनाता है, द्वितीय घूँट पागल बनाता है, तृतीय घूँट से वह दानव की तरह कार्य करने लगता है और चौथे घूंट से वह मुर्दे की तरह भूमि पर लुढ़क पड़ता है। एक पाश्चात्य चिंतक ने मदिरालय की तुलना दिवालिया बैंक से की है। मदिरालय एक ऐसे दिवालिया बैंक के सदृश है जहां तुम अपना धन जमा करा देते हो और खो देते हो। तुम्हारा समय, तुम्हारा चरित्र भी नष्ट हो जाता है। तुम्हारी स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। अशान्त दुर्जन के वचनों से चित अशान्त 'हुआ तुम्हारे घर का आनंद समाप्त हो जाता है। साथ ही अपनी आत्मा का भी सर्वनाश कर देते हो। मदिरा पोषक नहीं, शोषक शरीर को टिकाने के लिए आहार की आवश्यकता है। किंतु मदिरा में ऐसा कोई पोषक तत्त्व नहीं है जो शरीर के लिए आवश्यक है। अपितु उसमें सड़ाने से ऐसे जहरीले तत्त्व प्रविष्ट हो जाते हैं जिनसे शरीर पर घातक प्रभाव पड़ता हैं। मदिरा में एल्कोहल होता हैं वह इतना तेज होता है कि सौ बूंद पानी में एक बूंद एल्कोहल मिला हो और उसमें एक छोटा-सा कीड़ा गिर जाए तो शीघ्र ही मर जाता है। मदिरा के नशे में व्यक्ति की दशा पागल व्यक्ति की तरह होती है। वह पागल की तरह हंसता है, गाता है, बोलता है, नाचता है, घूमता है, दौड़ता है और मूर्च्छित हो जाता है। कभी वह विलाप करता है, कभी रोता है, कभी, अस्पष्ट गुनगुनाने लगता है, कभी चीखता है, कभी मस्तक धुनने लगता है। इस तरह शताधिक क्रियाएं वह पागलों की तरह करने लगता है। इसलिए कहा है मद्यपान से मानवों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। एक पाश्चात्य चिन्तक ने भी लिखा है - जब मानव में मद्यपान का व्यसन प्रविष्ट होता है तो उसकी बुद्धि उससे विदा ले लेती है । ( When drink enters, wisdom departs.) मदिरा के दोष आचार्य हरिभद्र ने मद्यपान करने वाले व्यक्ति से सोलह दोषों का उल्लेख किया है। वे इस प्रकार हैं - (1) शरीर विद्रूप होना (2) शरीर विविध रोगों का आश्रयस्थल होना (3) परिवार से तिरस्कृत होना (4) समय पर कार्य करने की क्षमता न रहना (5) अन्तर्मानस में द्वेष पैदा होना (6) ज्ञानतंतुओं का धुंधला हो जाना (7) 76

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