Book Title: Jain Dharma Darshan Part 1
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 84
________________ दोस Tag TAG सभावः एकत terde 5. चोरी चोरी का वास्तविक अर्थ है जिस वस्तु पर अपना अधिकार न हो उसके मालिक की अनुज्ञा, अनुमति के बिना उस पर अधिकार कर लेना, उसे अपने काम में लेना, उससे लाभ उठाना अदत्तादान (चोरी) है माल के मालिक के अधिकार के बिना कोई वस्तु लेना चोरी है । चोरी के प्रकार जाती है। मालिक की अनुपस्थिति में, उसकी उपस्थिति में भी, असावधानी से उसकी वस्तु को ग्रहण करना, सेंध लगाकर, जेब काटकर, ताला या गठरी खोलकर अथवा पड़ा हुआ, भूला हुआ, खोया हुआ, चुराया हुआ, कहीं पर रखा हुआ दूसरे के धन पर अधिकार करना चोरी है। एक चिन्तक ने चोरी के छह प्रकार बताए हैं उद्घाटक चोरी (5) बलात् चोरी (6) घातक चोरी । (1) छन्न चोरी (2) नजर चोरी (3) ठगी चोरी (4) 1. छन्न चोरी • छिपकर या गुप्त रूप से मालिक की दृष्टि चुराकर वस्तु का लेना छन्न चोरी है। 2. नजर चोरी :- देखते ही देखते वस्तु को चुरा लेना जैसे- दर्जी, सुनार आदि नजर चोरी करते है। 3. ठगी चोरी :- किसी को कपट से धोखा देकर ठगना, मिथ्या विज्ञापन देकर लोगों से पैसा ले लेना ठगी चोरी है। प्रश्नव्याकरण सूत्र में चोरी के तीस नाम बताकर कहा कि चोरी का कार्य अपकीर्ति को करने वाला अनार्य कर्म है, वह प्रियजनों में भेद उत्पन्न करने वाला है। चोरी विविध रूप से की 4. उद्घाटक चोरी गांठ, ताला, कपाट, तिजोरी आदि का द्वार खोलकर चुपके से सामान लेकर भाग जाना उद्घाटक चोरी है। 5. बलात् चोरी :- रास्ते में चलते यात्री की सम्पत्ति को भय दिखाकर लूट लेना बलात् चोरी है। 6. घातक चोरी ':- हमला करके या मानवों को घायल करके किसी के घर, दुकान आदि में सब कुछ लेकर भाग जाना घातक चोरी है। कुछ समय के लिए धन देकर परस्त्री के साथ रहना 6. परस्त्रीगमन अपनी स्त्री को छोडकर दूसरी स्त्रियों के पास जाना, विषयों का सेवन करना परस्त्रीगमन है। 78 घुस जाना और गृहस्थ के लिए विधान है कि वह अपनी विधिवत् विवाहित पत्नी में संतोष करके शेष सभी परस्त्री आदि के साथ मैथुन विधि का परित्याग करें। विराट रूप में फैली हुई वासनाओं को जिसके साथ विधिपूर्वक पाणिग्रहण हुआ है उसमें वह केन्द्रित करे। इस प्रकार असीम वासना को प्रस्तुत व्रत के द्वारा अत्यंत सीमित करें। परस्त्री से तात्पर्य अपनी धर्मपत्नि के अतिरिक्त अन्य सभी स्त्रियों से है। चाहे थोड़े समय के लिए किसी को रखा जाए या उपपत्नि के रूप में, किसी परित्यक्ता, व्यभिचारिणी, वेश्या, दासी या किसी की पत्नि अथवा कन्या - ये सभी स्त्रियां

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