Book Title: Jain Dharma Darshan Part 1
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 91
________________ कहलाती है। आलोचना, प्रतिक्रमण आदि द्वारा उन्हें आत्मा से दूर किया जा सकता है। अतिमुक्तक कुमार मुनि का उदाहरण आगम में प्रसिद्ध है। 'धागे में पिरोई सूईया - दृष्टांत - एक बार वृद्ध मुनियों के साथ बाल मुनि अतिमुक्तक वन में जा रहे थे। रास्ते में पानी से भरा गड्डा दिखाई दिया। बाल मुनि अपना लकड़ी का पात्र पानी में तैराते हए क्रीड़ा करने लगे। तभी वृद्ध मनि वहाँ आए और कहा कि इस प्रकार की क्रीड़ा करना अपना धर्म नहीं है। बालक मुनि लज्जित हुए और अन्तःकरण से प्रायश्चित लेकर बद्ध कर्मबंध प्रतिक्रमण किया व अपने बद्ध कर्मों की निर्जरा कर ली। 3. निधत्त :- धागे में पिरोई हुई सूइयों को कोई और मजबूत रस्सी से बाँधकर रख दे या उन्हें गर्म करके आपस में चिपका दे तो उन सूइयों को अलग-अलग करना बहुत कठिन हो जाता है, परंतु फिर भी प्रयत्न द्वारा उन्हें अलग किया जा सकता है। इसी प्रकार तीव्र कषाय भावपूर्वक आत्मा के साथ गाढ रूप में बंधे हुए कर्मों की अवस्था निधत्त है। अर्जुनमाली प्रायश्चित से मुनि की तरह वे कठोर तप से दूर किया जा सकते है। कर्मक्षय दृष्टांत - अर्जुनमाली एक यक्ष के अधीन होकर नित्य छः पुरुषों और एक स्त्री की हत्या करता था। एक दिन प्रभु महावीर के दर्शनार्थ सेठ सुदर्शन जा रहे थे। उनके भक्ति भाव से प्रभावित होकर यक्ष अर्जुनमाली के शरीर से निकल गया। अर्जुनमाली सेठ सुदर्शन के साथ प्रभु महावीर के पास पहुँचा। प्रभु वैल्डिंग की. के उद्बोधन से वह प्रतिबोधित हुआ और हुई कीलें किए गए घोर पापों के लिए प्रायश्चित कर चारित्र धर्म को अंगीकार करते हुए दुर्धर तप किए और उपसर्गों को शांत भाव से सहन करते हुए संचित पाप कर्मों और चार घाति कर्मों का नाश कर अन्ततोगत्वा केवलज्ञान को प्राप्त हुआ। पौषध, आयंबिल, तप आदि साधना द्वारा दीर्घकालीन कर्मों की शीघ्र ही निर्जरा की जा सकती है। ___4. निकाचित :- यदि कोई व्यक्ति उन सूइयों को एकत्र कर भट्टी पर तपा करके हथौड़े से कूट-कूटकर उन्हें पिंड रुप बना दे तो फिर उन सूइयों को अलग-अलग कर पाना संभव नहीं है। इसी प्रकार अति तीव्र कषाय भावों के साथ जिन कर्मों का बंध इतना सघन या प्रगाढ़ रूप में हो गया है कि उन्हें भोगे बिना छुटकारा नहीं हो सकता। इसे निकाचित कहा जाता है। निकाचित कर्मों में उद्वर्तन, उपवर्तन, संक्रमण आदि नहीं हो सकता। जिस प्रकार श्रेणिक राजा के बंधे नरक के कर्म भोगे बिना नहीं छूटे। 185 For Private Personal Use Only Jan Education International (www.jainelibrary.org

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