Book Title: Jain Dharma Darshan Part 1
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 69
________________ गति, विशेष प्रभायुक्त शरीर तथा उत्तम प्रकार के काम-भोग सुखों की उपलब्धि। देवों के चार प्रकार है - (1) भवनपति (असुरकुमार आदि) (2) व्यन्तर (भूत, पिशाच आदि) (3) ज्योतिषी (सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा), तथा (4) वैमानिक देव (ऊपर सौधर्मकल्प आदि विमानों में रहने वाले)। 1. भवनपति देव - इन देवों का निवास स्थान मेरु पर्वत से ह देव जाति के भेद-उपमेद नीचे अधोलोक में प्रथम नरक भूमि रत्नप्रभा के बीच में बने भवनों में है। इनके मुख्य रुप से | दो भेद है। - (1) भवनपति तथा (2) परमाधामी। भवनपति देवों के दस भेद इस प्रकार है 1. असुरकुमार 2. नागकुमार 3. सुपर्णकुमार 4. विद्युतकुमार 5. अग्निकुमार 6. द्वीपकुमार 7. उदधिकुमार 8. दिशाकुमार 9. वायुकुमार 10. स्तनितकुमार। इनके किसी के शरीर का रंग श्वेत, किसी का काला किसी का सोने जैसा चमकदार तथा किसी का लाल, हरा आदि। होता है। ये क्रीड़ाप्रिय तथा सुकुमार प्रकृति के देव होते हैं। किसी की पूजा-प्रार्थना से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। भवनपति-25 इनके मुकुटों पर बने अलगव्यंतर-26 अलग चिन्हों से इनकी पहचान ज्योतिषी-10 वैमानिक-38 हो जाती है। उत्तर दिशा में योग -99 तथा दक्षिण दिशा में रहने के। 99 पर्याप्त + 99 अपर्याप्त = 198 कारण इनके 20 भेद भी होते 2000eool IAS VII (चर (स्थिर भवनपति देवों की दूसरी जाति है - परमाधामी देव । ये बड़े क्रूर, कठोर तथा निर्दय स्वभाव के होते हैं। दूसरों को पीड़ा देने में ही इन्हें आनंद आता है। ये देव तीसरी नरक तक नरक में रहे नारकी जीवों को तरह-तरह की यातनाएँ देते रहते हैं। इनके 15 भेद हैं। 63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.ainelibrary.org

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