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भगवान महावीर की जन्म भूमि
भगवान महावीर की जन्मभूमि विदेह' देश की राजधानी वैशाली थी, जिसे वर्तमान में वसाढ़ कहा जाता है। प्राचीन काल में वैशाली की महत्ता और प्रतिष्ठा शक्तिशाली गणतन्त्र की राजधानी होने के कारण अधिक बढ़ गई थी। मुजफ्फरपुर जिले की गंडकी नदी के समीप स्थित वसाढ़ ही प्राचीन वैशाली है। उसे राजा विशाल की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । पाली ग्रन्थों में वैशाली के सम्बन्ध में लिखा है कि- दीवारों को तीन बार हटा कर विशाल करना पड़ा था, इसीलिए इसका नाम वैशाली हुआ जान पड़ता है। वैशाली में उस समय अनेक उपशाखा नगर थे जिनसे उसकी शोभा ओर भी द्विगुणित हो गई थी । प्राचीन वैशाली का वैभव अपूर्व था और उसमें चातुर्वर्ण के लोग निवास करते थे ।
वज्जी देश की शामक जातियों में मुख्य लिच्छवि थे । लिच्छवि उच्च वशीय क्षत्रिय थे । उनका वश उस समय अत्यन्त प्रतिष्ठित समझा जाता था । यह जाति अपनी वीरता, धीरता, दृढ़ता, सत्यता और पराक्रमादि के लिये प्रसिद्ध थी । इनका परस्पर संगठन और रीति रिवाज, धर्म और शासन प्रणाली सभी उत्तम थे। इनका शरीर अत्यन्त कमनीय और प्रोज एवं तेज से सम्पन्न था। ये अपने लिये विभिन्न रंगों के वस्त्रों का उपयोग करते थे और अच्छे प्राभूषण पहनते थे । परस्पर में एक दूसरे के सुख-दुख में काम आते थे। यदि किसी के घर कोई उत्सव वगैरह या इष्ट-वियोग आदि जैसा कारण बन जाता था तो सब लोग उसके घर पहुंचते थे, और उसे अनेक तरह से सान्त्वना प्रदान करते थे प्रत्येक कार्य को न्याय-नीति से सम्पन्न करते थे । वे न्यायप्रिय और निर्भय वृत्ति थं तथा स्वार्थपरता से दूर रहते थे । वे एकता और न्यायप्रियता के कारण अजेय बने हुए थे। वे अपने सभी कार्यो का निर्णय परस्पर में विचार-विनिमय से करते थे। राजा चेटक उस गणतन्त्र के प्रधान थे । राजा चंटक की रानी का नाम भद्रा था, जो बड़ी ही विदुपी और शीलादि सद्गुणों से विभूषित थी। राजा चंटक की सात पुत्रियाँ औौर सिह्भद्रादि दश पुत्र थे । सिहभद्र की सातो बहनों के नाम- प्रियकारिणी ( त्रिशला ), सुप्रभा, प्रभा
१. गण्डकी नदी से लेकर चम्पारन तक का प्रदेश विदेह अथवा नीरभुक्त ( तिरहुत) के नाम से भी ख्यात था । शक्ति संगम तन्त्र के निम्न पद्य से उसकी स्पष्ट सूचना मिलती है।
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गण्डकीतीरमारभ्य चम्पारण्यान्तकं शिवे । विदेहभूः समाख्याता नीरभुक्ताभिधां मनु ॥ (अ) अथ वज्रामिदेशे विद्याली नगरी नृपः ॥
(ग्रा) विदेहो श्रीर लिच्छवियों के पृथक् पृथक् संघो को मिला कर वृजिया वज्रिण था। समूचे वृजि संघ की राजधानी वैशाली ही थी। उसके स्थान पर बड़े-बड़े दरवाजे और गोपुर ( पहरा देने के मीनार ) बने हुए थे ।
- भारतीय इतिहास की रूपरेखा पृ० ३१० से ३१३
(इ) वज्जी देश में आजकल का चम्पारन और मुजफ्फरपुर, जिला दरभंगा का अधिकांश भाग तथा छपरा जिले का मिर्जापुर, परसा, सोनपुर के थाने तथा अन्य कुछ श्रीर भूभाग सम्मिनित थे । - पुरातत्व निबन्धावली पृ० १२
२. ( अ ) अथ वज्राभिधे देशे विशाली नगरी नृपः ।
अस्यां केोऽम्य भार्यामीत् यशोमतिरिति प्रभा ।। विनयाचार संपन्नः प्रतापाकान्तशत्रवः । प्रभूत् साधुकृतानन्दश्चेटकाख्यः सुनोऽनयोः ॥
— हरिणकथाकोष ५५ श्लोक १६५
एक ही मघ या गरण बन गया था जिसका नाम चारों ओर तिहरा परवोटा था जिसमें स्थान
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- वृहत्कथाकोष ५५ - १६६-१६७