Book Title: Jain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-118 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-114 6ठी शती) भी प्रकाश में आया। हरिभद्र के प्राकृत-योग-ग्रंथों में योगविंशिका, योगशतक, सम्बोधप्रकरण प्रसिद्ध ही हैं। इसी प्रकार, हरिभद्र का धूर्ताख्यान भी बहुत ही प्रसिद्ध ग्रन्थ है, किन्तु हम इसकी चर्चा प्राकृत-कथा-साहित्य में करेंगे। - इसी क्रम में, उपदेशपरक प्राकृत-ग्रंथों में हरिभद्र के सावयपण्णति, पंचाशकप्रकरण, पंचसुत्त, पंचवत्थु, संबोधप्रकरण आदि भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। इसी क्रम में अन्य उपदेशात्मक-ग्रन्थों में धम्मसंगहिणी, संबोधसत्तरी, धर्मदासगणि की उपदेशमाला, खरतरगच्छीय-आचार्य सोमप्रभ की उपदेशपुष्पमाला आदि भी प्रसिद्ध हैं। इसी क्रम में, दिगम्बर-परम्परा में देवसेन (10वीं शती) के भावसंग्रह, दर्शनसार, आराधनासार, ज्ञानसार, सावयधम्मदोहा आदि भी प्राकृत की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं। प्राकृत कथा साहित्य यद्यपि आगमों में अनेक ग्रंथ तो पूर्णतः कथा रूप ही हैं, जैसेज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, अन्तरकृत्दशा, विपाकसूत्र औपपातिकसूत्र, पयूर्षणाकल्प आदि / जम्बूदीपप्रज्ञाप्ति का कुछ अंश, जो ऋषभदेव, भरत आदि के चरित्र का वर्णन करता है, भी कथा-रूप ही है, किन्तु इनके अतिरिक्त भी आगमिक-व्याख्या-साहित्य में, विशेष रूप से नियुक्तियों भाष्यों और चूर्णियों में भी अनेक कथाएँ है। पिण्डनियुक्ति, संवेगरंगशाला, आराधनापताका आदि में भी अनेक कथाओं के निर्देश या संकेत उपलब्ध है। विषयों का स्पष्टीकरण करने में ये कथाएं बहुत ही सार्थक सिद्ध होती हैं। इन उपदेशात्मक-कथाओं के अतिरिक्त जैनआचार्यों ने अनेक आदर्श पुरुषों के जीवन-चरित्रों पर स्वतंत्र ग्रंथ भी लिखे हैं। इनमें तीर्थंकरों और शलाका-पुरुषों के चरित्र प्रमुख हैं। आगमों में भगवान् महावीर आदि के जीवन के कुछ प्रसंग ही चित्रित हैं। तीर्थकरों एवं अन्यशलाका पुरुषों के चरित्र को लेकर जो प्राकृत भाषा में स्वतंत्र ग्रंथ लिखे गये, उनमें सर्वप्रथम विमलसूरि के 'पंउमचरियं' की रचना हुई है। रामकथा के संदर्भ में वाल्मिकी की संस्कृत-भाषा में निबद्ध 'रामायण' के पश्चात् प्राकृत भाषा में रचित यही एक प्रथम ग्रंथ है, यह महाराष्ट्री-प्राकृत में निबद्ध है। इसका रचनाकाल ईसा की दूसरी शती से पांचवीं शती के

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152