Book Title: Jain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 148
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-146 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-142 जैनन्याय पर प्रमाणमीमांसा (अपूर्ण) और दार्शनिक समीक्षा के रूप में अन्ययोगव्यवच्छेदिका ऐसे दो महत्वपूर्ण दार्शनिक ग्रन्थों की रचना की। यद्यपि संस्कृत व्याकरण एवं साहित्य के क्षेत्र में उनका अवदान प्रचुर मात्रा में है, तथापि हमने यहाँ उनके दार्शनिक-ग्रन्थों की ही चर्चा की है। यद्यपि 13वीं, 14वीं, 15वीं और 16वीं शताब्दी में भी जैन-आचार्यों ने संस्कृत भाषा में कुछ दार्शनिक-टीका-ग्रन्थों की रचना की थी, इनमें स्याद्वादमंजरी एवं शास्त्रवार्तासमुच्चय एवं षट्दर्शनसमुच्चय की टीकाएँ मुख्य हैं, किन्तु कुछ ग्रन्थ भी लिखे गये, फिर भी वे अधिक महत्वपूर्ण न होने से हम यहाँ उनकी चर्चा नहीं कर रहे हैं, यद्यपि इस काल खण्ड में कुछ दार्शनिक-ग्रन्थों की टीकाएँ जैसे अन्ययोगव्यवछेदिका की स्यादवाद-मन्जरी नामक टीका, षडदर्शनसमुच्चय की टीका आदि भी लिखी गई थी, किन्तु विस्तारभय से उन सबमें जाना उचित नही हैं। 17वीं शताब्दी में श्वेताम्बर-परम्परा में उपाध्याय यशोविजय नामक एक प्रसिद्ध जैन लेखक हुए, जिनके अध्यात्मसार, ज्ञानसार आदि दर्शन के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। अध्यात्म के क्षेत्र में अध्यात्ममतसमीक्षा, अध्यात्मसार, ज्ञानसार आदि तथा दर्शन के क्षेत्र में जैन तर्कभाषा, नयोपदेश, नयसहस्र, न्यायालोक, स्यादवादकल्पलता आदि उनके अनेक ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। उनके पश्चात, 18वीं, 19वीं और 20वीं शताब्दी में जैन-दर्शन पर संस्कृत भाषा में कोई महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा गया हो- यह हमारी जानकारी में नहीं है, यद्यपि तत्त्वार्थसूत्र की शैली पर आचार्य तुलसी के जैनसिद्धान्तदीपिका और मनानुशासनम् नामक ग्रन्थों की संस्कृत भाषा में रचना की है, फिर भी इस कालखण्ड में संस्कृत भाषा में दार्शनिक-ग्रन्थों के लेखन की प्रवृत्ति नहीवत् ही रही है। ___ जहाँ तक अपभ्रंश भाषा में जैन-दार्शनिक-साहित्य का निर्देश उपलब्ध होता है, उसमें दो ग्रन्थ महत्वपूर्ण माने जाते हैं - 1. परमात्मप्रकाश और 2. प्राभृतदोहा ( पाउड दोहा)। यद्यपि ये दोनों ग्रन्थ दर्शन की अपेक्षा जैनसाधना पर अधिक बल देते हैं, फिर भी इन्हें अपभ्रंश के दार्शनिक-जैनसाहित्य का महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जा सकता है, किन्तु इनकी चर्चा हम प्राकृत के जैन-दार्शनिक-साहित्य के साथ कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त दिगम्बर-जैन-परम्परा में स्वयंभू से लेकर मध्यकाल तक अनेक पुराणों

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