Book Title: Jain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 124
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-122 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-118 ज्योतिष सम्बन्धी ग्रन्थ प्राकृत भाषा में भी रचित हैं, यथा- गणिविज्जा, अंगविज्जा, जोइसकरंडक (ज्योतिषकरण्डक-प्रकीर्णक), जोतिस्सार विवाहमण्डल, लग्गसृद्धि, दिणसृद्धि, गणहरहोस, जोइसदार, जोइसचक्कवियार, जोइस्सहीर आदि / इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनाचार्यों ने प्राकृत भाषा में विपुल ग्रन्थों का सर्जन किया था। संस्कृत भाषा में तो उनके अनेकों ज्योतिष-सम्बन्धी ग्रन्थ हैं ही। 'आयनाणतिलय' नामक फलित-ज्योतिष का जैन-आचार्य वोसरि का भी एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थं प्राप्त होता है। निमित्त शास्त्र निमित्त-शास्त्र भी जैनाचार्यों का प्रिय विषय रहा है। जयपायड इस विषय की प्राकृत भाषा की एक प्रसिद्ध रचना है। इसके अतिरिक्त, निमित्तपाहुड, जोणीपाहुड, रिठ्ठसम्मुच्चय, साणकय (श्वानकृत), छायादार, नाडीदार, उवस्सुइदार, निमित्तदार, रिठ्ठदार, पिपीलियानाण, करलक्षण छींकवियार आदि इस विषय की प्राकृत-कृतियाँ हैं। इस प्रकार, शिल्पशास्त्र में ठक्करफेरूकृत वत्थुसारपयरण आदि ग्रन्थ भी प्राकृत में उपलब्ध हैं। प्राकृत-आगम-साहित्य में भी जैन-खगोल, भूगोल, गणित, चिकित्साशास्त्र, प्राणीविज्ञान आदि से सम्बन्धित विषयवस्तु प्राकृत भाषा में उपलब्ध है। आज जैनाचार्यों द्वारा प्राकृतभाषा में रचित अनेक ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं एवं शोध की अपेक्षा रखते हैं। विस्तारभय से मैं अधिक गहराई में न जाकर इस चर्चा को यही विराम दे रहा हूँ। मैने इस आलेख में प्राकृत भाषा में रचित जैन-कृतियों के नाममात्र दिये हैं। जहाँ तक सम्भव होसका लेखक और रचनाकाल का भी संकेत मात्र किया है। ग्रन्थ की विषय वस्तु एवं अन्य विशेषताओं की कोई चर्चा नहीं की है। अन्यथा यह आलेख स्वयं एक पुस्तकाकार हो जाता है। यह भी सम्भव है कि मेरी जानकारी के अभाव में कुछ प्राकृत-ग्रन्थ छूट भी गये हों, एतदर्थ मैं क्षमा-प्रार्थी हूँ। विद्वानों से प्राप्त सूचना पर उन्हें सम्मिलित किया जा सकेगा। जैनों का संस्कृत साहित्य भारतीय-संस्कृति की दो शाखाएं हैं - 1. श्रमण और 2. वैदिक।

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