Book Title: Jain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 127
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-125 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-121 जैन-आचार्यों के द्वारा संस्कृत भाषा में निबद्ध ग्रन्थों में तत्त्वार्थसूत्र और उसकी टीकाएँ प्रमुख मानी जा सकती हैं। तत्त्वार्थसूत्र पर दिगम्बर–परम्परा में पूज्यपाद देवनन्दि (लगभग 6 छठवीं शताब्दी) ने सर्वार्थसिद्धि नामक टीका की रचना की। इनकी अन्य कृतियों में इष्टोपदेश, समाधितन्त्र आदि भी हैं, जो संस्कृत भाषा में लिखी गई है। श्वेताम्बर–धारा में जैन-न्याय और अनेकांतवाद पर आधारित सर्वप्रथम संस्कृत-कृति मल्लवादी क्षमाश्रमण का द्वादशारनयचक्र है। ऐसा माना जाता है कि उस पर सिद्धसेन की जो टीका है, वह भी संस्कृत में है, किन्तु सिद्धसेन की मुख्य कृति सन्मतितर्क मूलतः प्राकृत भाषा में है। सिद्धसेन की कुछ द्वात्रिंशिकाएँ मिलती है, जो संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं। तत्त्वार्थसूत्र पर श्वेताम्बर-परम्परा में संस्कृत भाषा में टीका लिखने वाले सिद्धसेन गणि हैं, जो सन्मतितर्क के कर्ता सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न हैं और 7 वीं शती के है। जैन-न्याय पर सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में ग्रन्थ लिखने वाले सिद्धसेन दिवाकर हैं, जिन्होंने न्यायावतार नामक एक द्वात्रिंशिका संस्कृत भाषा में लिखी है। दिगम्बर-परम्परा में पूज्यपाद के पश्चात् अकलंक ने तत्त्वार्थसूत्र पर संस्कृत में राजवार्तिक नामक टीका लिखी, साथ ही, जैनन्याय के कुछ ग्रन्थों का भी संस्कृत में प्रणयन किया। उनके पश्चात् विद्यानन्द ने श्लोकवार्तिक नाम से तत्त्वार्थसूत्र की टीका लिखी। इसके अतिरिक्त, 8वीं और 9वीं शताब्दी में जैनन्याय पर जो भी ग्रन्थ लिखे गये, वे प्रायः सब संस्कृत भाषा में ही लिखे गये। जैनों के न्याय-संबंधी सभी प्रमुख ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गये। जैनआचार्यों ने निम्न विषयों परं संस्कृत भाषा में अपने ग्रन्थों की रचना कीआगमिक-टीकाएँ, वृतियाँ एवं व्याख्याएँ, आगमिक प्रकरण (इस विधा के कुछ ही ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं)। संस्कृत भाषा में जैनों के अनेक स्तुति-स्तोत्र आदि भी मिलते हैं, जैन-कर्मसिद्धान्त के कुछ ग्रन्थों की संस्कृत-टीकाएँ भी मिलती हैं, जैनयोग एवं ध्यान के कुछ ग्रन्थ भी संस्कृत में हैं, यथा शुभचन्द्र का ज्ञानार्णव, हेमचन्द्र का योगशास्त्र आदि योग सम्बन्धी निर्वाणकलिका, रूपमण्डन एवं समरांगणसूत्रधार आदि जैनकला के अनेक ग्रन्थ संस्कृत में ही हैं। जैन-राजनीति के ग्रन्थ, यथानीतिवाक्यामृत, अर्हतीति आदि भी संस्कृत में हैं जैन तीर्थमालाएँ, जैन-विज्ञान

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152