Book Title: Jain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 123
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-121 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-117 -'अभिधानराजेन्द्रकोश', शेठहरगोविन्ददासकृत, 'पाइयसददमहण्णव', मुनिरत्नचन्द्रकृत 'अर्धमागधीकोश', पाइयसद्दमहण्णव पर आधारित के. आर. चन्द्रा का प्राकृत-हिन्दी-कोश The student's English-paiya Dictionary आदि ही प्रमुख है। इसके अतिरिक्त, प्राकृत शब्द-रूपों को लेकर जैन-विश्वभारती संस्थान से आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञजी के निर्देशन में तैयार निम्न कोश-ग्रन्थ भी महत्त्वपूर्ण हैं- 1. आगमशब्दकोश, 2. देशीशब्दकोश, 3. निरूक्तकोश, 4. एकार्थककोश, 5. जैन-आगमवनस्पतिकोश 6. जैन आगम प्राणीकोश 7. श्री भिक्षु-आगमकोश, भाग-1 एवं भाग-2 आदि। प्राकृत नाटक___ यहाँ यह ज्ञातव्य है कि प्राचीन नाटक और सट्टक प्रायः संस्कृत भाषा की रचनाएँ माने जाते हैं, किन्तु संस्कृत-नाटकों में प्रायः बहुल अंश प्राकृत का ही होता है, अतः मुख्यता प्राकृतों की होने से उन्हें प्राकृत भाषा का भी माना जा सकता है। ये नाटक भी जैन एवं अजैन-दोनों परम्पराओं में लिखे गये हैं। कुछ नाटक ऐसे भी हैं, जो मात्र प्राकृत भाषा में रचित हैं, और सट्टक के रूप में जाने जाते है। यथा-कप्पूरमंजरी, विलासवइ, चंदलेहा, आनन्दसुंदरी, सिंगारमंजरी आदि। जैन-नाटककारों में दिगम्बर हस्तिमल प्रसिद्ध हैं। इनके निम्न नाटक उपलब्ध हैं- अंजना पवनंजय, मैथिलीकल्याण, विक्रान्तकौरव, सुलोचना और सुभद्राहरण। श्वेताम्बरों में आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र ने जहाँ एक और संस्कृत में नाट्य -दर्पण नामक ग्रन्थ लिखा, वही प्राकृत संस्कृत मिश्रित भाषा में अनेक-नाटकों की भी रचना की यथा- कौमुदीमित्रानन्द, नतविलास, यादवाभ्युदय, रधुविलास, राधषाभ्युदय, वनमाला (नाटिका), सत्यहरिशचन्द्र। इसके अतिरिक्त, अजैन-लेखकों द्वारा रचित नाटकों, सट्टको आदि में भी प्राकृत के अंश मौजूद है। ज्योतिष - यद्यपि चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति प्राकृत भाषा में रचित ज्योतिष-सम्बन्धी . प्रमुख आगम-ग्रन्थ हैं, किन्तु इनके अतिरिक्त भी जैन-परम्परा में अनेक

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